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बांग्लादेश में “जमात-ए-इस्लामी” संभालेगी कमान! सुप्रीम कोर्ट ने पंजीकरण किया बहाल

Bangladesh Election: बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी के पंजीकरण को बहाल कर दिया है। इस फैसले के बाद जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) को आगामी चुनावों में हिस्सा लेने का अधिकार मिल गया है।

भारतJun 01, 2025 / 02:58 pm

Devika Chatraj

Bangladesh

बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने “जमात-ए-इस्लामी” को किया भाल (फोटो – ANI)

बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़े घटनाक्रम के तहत सुप्रीम कोर्ट (Bangladesh Supreme Court) ने जमात-ए-इस्लामी के पंजीकरण को बहाल कर दिया है। इस फैसले के बाद जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) को आगामी चुनावों में हिस्सा लेने का अधिकार मिल गया है, जिससे देश की राजनीतिक गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना जताई जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

जमात-ए-इस्लामी पर 2013 में चुनाव आयोग द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था, जब इसकी विचारधारा को संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ माना गया था। इस प्रतिबंध के खिलाफ जमात ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए संगठन के पंजीकरण को बहाल करने का आदेश दिया। यह फैसला 27 मई को जमात के वरिष्ठ नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम की मौत की सजा को रद करने के बाद आया है, जिसे 2014 में युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

राजनीतिक प्रभाव

जमात-ए-इस्लामी के पुनरुत्थान से बांग्लादेश की राजनीति में नए समीकरण बनने की संभावना है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह संगठन अपनी मजबूत संगठनात्मक संरचना और समर्थक आधार के कारण चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, इस फैसले ने देश में ध्रुवीकरण को भी बढ़ा दिया है। जहां जमात के समर्थक इसे लोकतंत्र की जीत बता रहे हैं, वहीं आलोचकों का कहना है कि इससे देश में कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल सकता है।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय

जमात-ए-इस्लामी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेंगे। संगठन ने यह भी मांग की है कि चुनाव से पहले इस्लामी शरिया के कुछ प्रावधानों को लागू किया जाए। दूसरी ओर, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और अन्य राजनीतिक दल इस घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं। यह फैसला बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है। हालांकि, इसका दीर्घकालिक प्रभाव देश की धर्मनिरपेक्षता और स्थिरता पर निर्भर करेगा।

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