क्लेयर लीटन का एक दुर्लभ कार्य: लकड़ी की नक्काशी का नायाब काम
इंडियन एक्सप्रेस ने बोनहम्स के ट्रैवल एंड एक्सप्लोरेशन के बिक्री प्रमुख रियानोन डेमरी के हवाले से बताया, “यह न केवल क्लेयर लीटन का एक दुर्लभ कार्य है, जो मुख्य रूप से अपनी लकड़ी की नक्काशी के लिए जानी जाती हैं, बल्कि यह महात्मा गांधी की एकमात्र ऑइल पेंटिंग भी मानी जाती है, जिसे उन्होंने बैठ कर बनाया था।”रिपोर्ट के अनुसार, कलाकार के भतीजे कैस्पर लीटन ने इस पेंटिंग को “संभवतः छिपा हुआ खजाना” बताया है।
नीलामी के लिए रखी गई गांधी जी की पेंटिंग की कीमत
जानकारी के अनुसार अगले महीने पहली बार नीलामी के लिए रखी गई इस पेंटिंग के £50,000 से £70,000 ($68,000 और $95,000) के बीच में बिकने का अनुमान है।
बापू की ऑइल पेंटिंग और पहले की प्रदशर्नियां
इस पेंटिंग को नवंबर 1931 में लंदन में प्रदर्शित किया गया था। इस पेंटिंग का एकमात्र अन्य सार्वजनिक प्रदर्शन 1978 में क्लेयर लीटन के काम की बोस्टन पब्लिक लाइब्रेरी प्रदर्शनी में हुआ था।
इस पेंटिंग में कहानी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है
क्लेयर की मृत्यु के बाद, यह कलाकृति कैस्पर के पिता के पास चली गई और फिर उसके पास। कैस्पर ने कहा, “यह मेरे परिवार की कहानी है, लेकिन इस पेंटिंग में कहानी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है।” उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि अगर इसे ज़्यादा लोग देखें तो यह बहुत अच्छा होगा। शायद इसे वापस भारत ले जाना चाहिए – शायद यही इसका असली घर है।”
गांधी-क्लेयर एसोसिएशन : एक नजर
क्लेयर लीटन की सन 1931 में गांधीजी से मुलाकात हुई थी, जो उस समय भारत के राजनीतिक भविष्य के संबंध में ब्रिटिश सरकार के साथ विचार-विमर्श के लिए लंदन में थे। गौरतलब है कि क्लेयर लंदन के वामपंथी कलात्मक समूहों का हिस्सा थीं, उन्हें उनके साथी, पत्रकार हेनरी नोएल ब्रेल्सफ़ोर्ड ने गांधी से मिलवाया था। कैस्पर ने कहा, “मुझे लगता है कि यह स्पष्ट रूप से कलात्मक बौद्धिक प्रेमालाप था।” उन्होंने उल्लेख किया कि उनकी महान-चाची गांधी के साथ “सामाजिक न्याय की भावना” साझा करती थीं।
पेंटिंग पर हमला और उसकी मरम्मत
लीटन के परिवार के अनुसार, 1970 के दशक की शुरुआत में एक “हिंदू चरमपंथी” ने इस चित्र पर चाकू से हमला किया था। हालाँकि इस हमले का कहीं भी दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है, लेकिन पेंटिंग के पीछे एक लेबल इस बात की पुष्टि करता है कि 1974 में अमेरिका में इसकी बहाली की गई थी।
अहिंसा की कीमत दिए जा रहा हूं
महात्मा गांधी के निधन पर जोधपुर के तत्कालीन नगर परिषद में आयोजित एक शोकसभा में गांधीजी के चित्र पर रूई को लाल रंग से गीला कर के लगाया गया था। जिस पर तत्कालीन मशहूर शायर रम्जी इटावी ने यह शेर कहा था-
मैं सीने पे दाग इक लिए जा रहा हूं,
अहिंसा की कीमत दिए जा रहा हूं।
पेंटर ने इस कल्पना को पेंटिंग पर साकार किया है।
गांधी के चेहरे पर गहरे घाव की छाया दिखाई है
पेंटिंग पर यूवी लाइट डालते हुए डेमरी ने गांधी के चेहरे पर गहरे घाव की छाया दिखाई है। डेमरी ने बताया कि अब बहाल की गई पेंटिंग को यहीं नुकसान पहुंचाया गया था। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि यह जानबूझ कर किया गया है।”
महात्मा गांधी और इंग्लैंड कनेक्शन
महात्मा गांधी और इंग्लैंड का कनेक्शन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। महात्मा गांधी का इंग्लैंड से गहरा संबंध रहा, जो उनके जीवन और संघर्ष के कई मोड़ों पर दिखाई देता है। गांधीजी का इंग्लैंड से जुड़ाव न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन से, बल्कि उनके विचारों और आंदोलनों से भी संबंधित है।
बापू की शिक्षा का प्रारंभ और इंग्लैंड
महात्मा गांधी का इंग्लैंड से पहला संबंध 1888 में शुरू हुआ, जब वे लंदन में इनर टेम्पल से कानून की पढ़ाई करने गए थे। गांधीजी ने इंग्लैंड में रहकर न केवल कानून की पढ़ाई की, बल्कि इंग्लैंड के सामाजिक और राजनीतिक जीवन को भी समझा। लंदन में उन्होंने भारतीय समाज से अलग होकर पश्चिमी संस्कृति और विचारों का अध्ययन किया, जो बाद में उनके विचारों पर प्रभाव डालने वाला था।
गांधीजी का इंग्लैंड में समाजिक परिवर्तन की ओर रुझान
लंदन में रहते हुए गांधीजी ने ब्रिटिश समाज की रचनात्मक और प्रगतिशील विशेषताओं को देखा। यहाँ उन्होंने ‘हायड पार्क’ और ‘ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ जैसी जगहों पर विचारों का आदान-प्रदान किया और समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानता पर विचार किया। गांधीजी ने यहां वेजिटेरियन आंदोलन में भी भाग लिया और वहां के वेजिटेरियन सोसाइटी से जुड़े।
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी का संघर्ष और इंग्लैंड
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों का प्रयोग किया। इंग्लैंड से उनका कनेक्शन यहाँ भी था, क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, विदेशी भूमि पर भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। बापू का यह संघर्ष इंग्लैंड में भारतीयों की स्थिति के प्रति उनकी समझ को भी प्रभावित करता था।
भारत में अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह,अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई
गांधीजी ने भारत में अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह, असहमति, और भारतीय असहमति आंदोलनों की शुरुआत की। नमक कानून के खिलाफ गांधीजी ने इंग्लैंड से आए साम्राज्यवादी शासन का विरोध किया। 1930 में दांडी मार्च का नेतृत्व करते हुए गांधीजी ने भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार देने की मांग की, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रतिरोध था।
गांधीजी की इंग्लैंड यात्रा और स्वतंत्रता संग्राम
गांधीजी ने कई बार इंग्लैंड का दौरा किया। उन्होंने सन 1924 में लंदन दौरा किया था, जहां उन्होंने ब्रिटिश नेताओं और समाज से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में चर्चा की। गांधीजी सन 1931 के गोलमेज सम्मेलन में भी इंग्लैंड गए थे, जिसमें उन्होंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री स्टेनली बाल्डविन और अन्य प्रमुख नेताओं से भारतीय स्वतंत्रता की बात की थी।
इंग्लैंड की प्रतिक्रिया और गांधीजी की भूमिका
इंग्लैंड में गांधीजी की उपस्थिति ने वहाँ के समाज में भारतीय स्वतंत्रता के बारे में चेतना और जागरूकता बढ़ाई है। हालांकि अंग्रेजी सरकार ने गांधीजी के आंदोलनों का विरोध किया, लेकिन उनके विचारों और आंदोलनों ने इंग्लैंड और समूचे पश्चिमी दुनिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को व्यापक समर्थन दिलाया।
बापू से संबंधित यादगार तस्वीर शौकीनों के ड्राइंग रूम की शोभा बनेगी
बहरहाल महात्मा गांधी का इंग्लैंड से संबंध उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण हिस्सों से जुड़ा हुआ था। यह खुशी की बात है कि हमारे बापू से संबंधित उनकी एक नायाब और यादगार तस्वीर उनकी यादों को संजोने के कला रसिकों और गांधीवादी शौकीनों के ड्राइंग रूम की शोभा बनेगी।