अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत तुरंत और ठोस कदम उठाएं
फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय (Palestinian Ministry of Foreign Affairs) और संयुक्त राष्ट्र (UN) की संबंधित संस्थाओं से अपील की है कि वे इस तरह की भड़काऊ कार्रवाइयों का गंभीरता से संज्ञान लें और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत तुरंत और ठोस कदम उठाएं। मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि यरूशलम में वर्तमान “यथास्थिति” (Status Quo) व्यवस्था के अंतर्गत गैर-मुसलमानों को अल-अक़्सा परिसर में इबादत करने की अनुमति नहीं है।इज़राइली ज़ायोनी बस्तियों के समर्थक अल-अक़्सा मस्जिद में घुसते हैं
गौरतलब है कि इज़राइली ज़ायोनी बस्तियों के समर्थक, अक्सर इज़राइली सुरक्षा बलों की मौजूदगी में अल-अक़्सा मस्जिद के प्रांगण में घुसते हैं और अपना धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। ये गतिविधियां फिलिस्तीनी जनता के लिए अत्यंत भड़काऊ मानी जा रही हैं।क्या है अल-अक़्सा मस्जिद, इस पर कौन-कौन कर रहा है दावा
अल-अक़्सा मस्जिद यरूशलम (Jerusalem) के पुराने शहर (Old City) में स्थित एक अत्यंत पवित्र इस्लामी स्थल है। यह इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यह मस्जिद हरम अल-शरीफ (Temple Mount) नामक बड़े परिसर में स्थित है, जिसमें गोल्डन डोम वाला “डोम ऑफ द रॉक” (Qubbat as-Sakhra) भी शामिल है।पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद ने मैराज की यात्रा) के दौरान जन्नत का सफर किया था
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ से पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद (PBUH) ने मैराज (रात की यात्रा) के दौरान जन्नत का सफर किया था। कुरान में इसका “अल-अक्सा” के रूप में ज़िक्र किया गया है। यह स्थल 7वीं शताब्दी से मुस्लिमों के धार्मिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक जुड़ाव का केंद्र रहा है।अल-अक़्सा के लिए यहूदी मान्यता
यहूदियों का मानना है कि यही वह स्थान है, जहाँ कभी उनका प्राचीन “हेकल सुलेमानी” (Solomon’s Temple) स्थित था। यहूदी इसे “Temple Mount” कहते हैं और मानते हैं कि यहां उनका प्रथम और द्वितीय धर्म स्थज बना था, जो क्रमशः बेबीलोनियों और रोमनों ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान में यहूदी गुट वहां “तीसरा धर्म स्थल” बनाने की कोशिशों के पक्षधर हैं।अल-अक्सा के लिए ईसाई मान्यता
अल-अक़्सा को ईसाई धर्म में भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह बाइबल की कई घटनाओं से जुड़ा हुआ है और यरूशलम उनके लिए भी एक धार्मिक नगरी है। हालांकि ईसाइयों का धार्मिक केंद्र यहाँ नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से यरूशलेम के अन्य हिस्सों में है जैसे कि चर्च ऑफ द होली सेपल्चर।यहूदी गुट इसे यहूदी विरासत का केंद्र मानते हैं
बहरहाल फिलिस्तीनी और मुस्लिम दुनिया इसे इस्लाम का पवित्र स्थल मानते हैं और उनकी हैं कि इसकी देखरेख केवल मुस्लिम वक्फ के हाथ में होनी चाहिए। बजकि इज़राइली और ज़ायोनी गुट के कुछ कट्टरपंथी यहूदी गुट इसे यहूदी विरासत का केंद्र मानते हैं।ये भी पढ़ें: इस यूनिवर्सिटी में दनादन गोलीबारी के समय ख़ौफ़नाक था नज़ारा, जानिए कैसे बचे ये छात्र