दरगाह दीवान का मानना है कि अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने से यहां सांप्रदायिक सद्भाव और बढ़ेगा। इधर, इस बयान के बाद हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दीवान के बयान का समर्थन किया है। विष्णु गुप्ता ने कहा कि दीवान के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि अजमेर में कभी जैन मंदिर थे।
अजमेर दरगाह के दीवान ने क्या कहा?
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अजमेर को राष्ट्रीय स्तरीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग की है। दीवान ने बताया कि भारत विभिन्न धर्मों और समृद्ध आध्यात्मिक विरासतों का संगम है। यह सहस्र संतों, ऋषियों और विभूतियों की तपोस्थल रही है। मानवता के कल्याण के लिए संतों ने अनमोल योगदान दिया है। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह, पुष्कर जगतपिता ब्रह्माजी का मंदिर और सरोवर है। उन्होंने कहा कि इसी तरह आचार्य विद्यासागर की दीक्षास्थली भी इसी शहर में है। उनकी कठोर तपस्या, त्याग और मानवसेवा के विचार देश-दुनिया का मार्ग प्रशस्त कर रहे है। उनकी आध्यात्मिक जीवन की यात्रा यहीं से प्रारंभ हुई थी। राष्ट्रीय स्तरीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करना आचार्य विद्यासागर का सच्चा सम्मान होगा। इस दौरान सर्वधर्म मैत्री संघ के प्रकाश जैन और अन्य मौजूद रहे।
विष्णु गुप्ता ने मांग का किया समर्थन
दीवान के इस बयान पर हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने कहा कि कम से कम दरगाह दीवान ने यह तो माना की अजमेर जैन धर्म की प्राचीन तीर्थ स्थली रही है। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने स्वयं अजमेर कोर्ट में यह मामला दायर किया है कि दरगाह शरीफ जिस स्थान पर स्थित है, वहां पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था, जिसे तोड़कर दरगाह बनाई गई थी। यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
क्या है यहां का इतिहास?
गौरतलब है कि अजमेर का इतिहास और वर्तमान जैन संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। जैन धर्म के आचार्य विद्यासागर महाराज का संबंध अजमेर से है। विद्यासागर ने 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि पद की दीक्षा ली थी । अजमेर में महावीर सर्किल के पास दीक्षास्थल पावन तीर्थ बन चुका है। यहां 71 फीट का कीर्ति स्तंभ और दीक्षा से जुड़े भित्ति चित्र उकेरे गए हैं। मालूम हो कि हाल फिलहाल में अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में मंदिर होने को लेकर किए जा रहे दावों के बीच ऐतिहासिक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद में भी मंदिर होने का दावा किया गया था।