
प्रशासन से नहीं बनी बात
गुरुवार सुबह किसान नेताओं और जिला प्रशासन के बीच वार्ता हुई, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। झील बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के नेताओं ने स्पष्ट कहा कि जब तक झील के आसपास बोरवेल बनाने की योजना को वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा। (गुरुवार को शाम 4 बजे तक सहमति नहीं बनी)यह है पूरा मामला
अलवर शहर की पानी की जरूरत को देखते हुए सरकार ने सिलीसेढ़ झील के आसपास 30 बोरवेल स्वीकृत किए हैं। इस योजना के लिए बजट भी जारी हो चुका है और 20 मई को मुख्यमंत्री द्वारा इसका शिलान्यास भी किया गया था। किसानों का कहना है कि सिलीसेढ़ झील के आसपास बोरिंग होने से उनके खेतों की भूजल स्तर में गिरावट आएगी।जिससे सिंचाई के लिए पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा और उनकी खेती चौपट हो जाएगी। साथ ही किसानों ने स्पष्ट किया है कि आंदोलन न सिर्फ पानी की लूट के खिलाफ है, बल्कि किसानों के अधिकारों और सिलीसेढ़ झील की पारिस्थितिकी को बचाने की लड़ाई भी है।
21 दिन से जारी है धरना
सिलीसेढ़ और आसपास के 40 गांवों के किसान पिछले 21 दिनों से धरने पर बैठे हैं। महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को और मजबूती दी है। गुरुवार को जब प्रशासन से वार्ता में कोई नतीजा नहीं निकला, तो किसानों ने साफ कर दिया कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं।
तीन से चार हजार की संख्या में किसान
किसानों ने गुरुवार को 500 से अधिक ट्रैक्टरों के काफिले के साथ तीन से चार हजार की संख्या में अलवर पहुंचने की घोषणा की है। इससे पहले समिति ने स्पष्ट कर दिया कि यह आंदोलन न सिर्फ पानी की लूट के खिलाफ है, बल्कि किसानों के अधिकारों और सिलीसेढ़ झील की पारिस्थितिकी को बचाने की लड़ाई भी है।
मजबूत बेरिकेडिंग
प्रशासन ने किसानों की इस रणनीति को गंभीरता से लेते हुए अलवर शहर की सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा और मजबूत बेरिकेडिंग की है। ताकि किसानों को ट्रैक्टरों के साथ शहर में प्रवेश करने से रोका जा सके। ट्रैफिक व्यवस्था को देखते हुए शहर के प्रमुख मार्गों पर अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों का कहना है कि सिलीसेढ़ झील का पानी पारंपरिक रूप से आसपास के गांवों की खेती और पशुपालन के लिए जीवनरेखा रहा है।
झील का अस्तित्व खतरे में
किसानों का कहना है कि शहर को पेयजल आपूर्ति के लिए झील से बोरिंग कर पानी खींचना ग्रामीणों के अधिकारों का हनन है और झील का अस्तित्व खतरे में डालने वाला कदम है। धरना स्थल पर रोज सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण एकत्र होते हैं। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी ने आंदोलन को नई ऊर्जा दी है।
किसानों की चेतावनी
समिति ने साफ कर दिया है कि जब तक झील से पानी खींचने की योजना को वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा। कई वार्ता के बाद भी प्रशासन और किसानों के बीच अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। गुरुवार का दिन प्रशासन और किसानों दोनों के लिए अहम माना जा रहा है। अब देखना होगा कि क्या सरकार किसानों की मांगों पर विचार करती है या फिर आंदोलन और तीव्र होगा।
ढाई पैड़ी पहुंचते ही ग्रामीणों ने प्रशासन से दो टूक कहा कि जब तक जिला कलेक्टर से वार्ता नहीं होगी, वे वापस नहीं लौटेंगे। मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात है और शहर में प्रवेश को लेकर सख्त बैरिकेडिंग की गई है।

