15 रुपए मजदूरी में घर चलाते थे नन्नूराम, लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं रोकी- मेरे पिता नन्नूराम सैनी खूद तो पढ नहीं सके लेकिन बच्चों को पढा लिखाकर इस लायक बना दिया कि वो आज हम सब अपना परिवार अच्छे से चला रहे हैं। यह कहना है एडवोकेट नरेश कुमार सैनी का जो कि अपर लोक अभियोजक भी रह चुके हैं साथ ही खेलों में भी नाम कमाया। ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी हैंडबॉल प्रतियोगिता में सिल्वर मैडल जीत चुके हैं। इनके भाई धरम चंद सैनी जोधपुर विद्युत निगम में तकनीकि सहायक के पद पर कार्यरत है। वह बताते हैं कि बचपन से ही पिता को परिवार चलाने के लिए मजदूरी करते देखा है। शुरुआत में मजदूरी के 15 रुपए प्रतिदिन मिलते थे , इतने कम पैंसे में परिवार चलाना मुश्किल था, इसलिए घर मेंं आर्थिक तंगी हर समय रहती थी। हालत यह हो गई कि पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई। मेरे पिता चाहते थे कि जो परेशानी मेरे जीवन में आई वो बच्चों को ना देखनी पडे़ इसलिए हमें पढ़ाई के लिए हमेशा प्रेरित करते थे, ताकि जीवन में कुछ बन सके। आज जो सफलता हमें मिली है उसमें पिता का ही योगदान है। आज मेरे पिता भगवान की भक्ति कर उनका धन्यवाद करते हैं।
पांचवी पास पिता ने समझा पढ़ाई का महत्व, बेटे को करवाई एमबीए एक पिता अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करता है। उनके उज्ज्वल भविष्य को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित रहता हैं और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने का काम करते हैं। मेरे पिता ने भी ऐसा ही किया। हम बचपन में गांव में रहते थे, वहां थोडी बहुत खेतीबाडी से थी जिससे गुजारा नहीं चलता था, इसलिए मां खेतों में काम करती और पिता शहर में आकर रिक्शा चलाते थे। बहुत मुश्किल से खर्चा चलता था, बाद में शहर में आकर रहने लगे। मेरे पिता पांचवी पास है इसलिए कोई अच्छी नौकरी नहीं कर पाए यह दुख हमेशा रहा। इसलिए वो चाहते थे बच्चे पढ़ लिखकर कुछ बने। मैंने एमबीए किया, पीजी डिप्लोमा इन लेबर लॉज किया। इसके लिए पिता ने उधार लिया, इधर उधर से पैसे का इंतजाम किया। आज मैं पिता की बदौलत ही एक निजी कंपनी में एच आर मैनेजर के पद पर काम कर रहा हूं। मेरी बहन की शादी हो चुकी है और छोटा भाई पढ़ाई करने के बाद अपना काम संभाल रहा है।
पुरुषेत्तम दास माटा, स्कीम नंबर दस, अलवर । अलवर शहर में फौजी कॉलोनी निवासी हाजी नूरदीन ने भी पिता होने का फर्ज खूब निभाया, खूद तो तीसरी क्लास से ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाए लेकिन बच्चों को पढ़ा लिखाकर इस लायक बना दिया कि इन पर सबको नाज है। मेव समाज से होने के कारण पढा़ई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन इन्होंने शुरू से ही बच्चों को स्कूल भेजना जरुरी समझा। इसके लिए पैतृग कांव खैरथल के पास श्यामका को छोड़कर अलवर शहर आ गए। यहां अच्छी स्कूली शिक्षा दिलवाई। इनके पास बच्चे हैं अनिशा, यासमीन, खुशी, आबिद और अनीस। इसमें एक बेटा रेलवे में सैक्शन इंजीनियर के पद पर महेंद्रगढ में कार्यरत है, दूसरा बेटा एलएलबी, बीटेक एमटैक कर अपना काम कर रहा है। बेटी एलएलबी करने के बाद आरजेएस की तैयारी कर रही हैं, दूसरी बेटी बीएड के बाद रीट के मैन एग्जाम की तैयारी कर रही हैं। सबसे छोटी बेटी ने दसवीं में इसी साल 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं।