दरअसल, रोडवेज प्रशासन ने तय किया था कि कलक्टर के जरिए सिविल डिफेंस के स्वयंसेवकों को बस सारथी बनाया जाएगा। पूरे प्रदेशभर में 1400 से ज्यादा बस सारथी की वेकेंसी निकालकर भर्ती की गई। इन बस सारथियाें को रोडवेज प्रशासन की ओर से 24 हजार रुपए वेतन दिया जा रहा है। यही नहीं इन पर प्रति किमी कमाई के लक्ष्य का भी बोझ नहीं डाला गया है। ऐसे में बस एजेंट खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। रोडवेज प्रशासन इन एजेंट्स को केवल 13 हजार रुपए महीना वेतन दे रहा है और 35 रुपए प्रति किमी के राजस्व का भी लक्ष्य भी दे रखा है। रोडवेज प्रशासन ने साफ कर दिया है कि बस एजेंट्स को इससे कम का लक्ष्य नहीं दिया जाएगा।
स्थायी परिचालकों का भी लक्ष्य रोडवेज के खुद के परिचालकाें को भी 33 रुपए प्रति किमी के राजस्व का लक्ष्य दिया गया है। इस स्लिपर बस का लक्ष्य 38 रुपए प्रति किमी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर सिविल डिफेंस के स्वयंसेवकों को लक्ष्य क्यों नहीं दिया गया? इसे लेकर अंदरखाने रोडवेज कर्मचारी संगठन एमडी तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं।
रूट बदल दिया जाता है जो परिचालक तय लक्ष्य के अनुसार राजस्व नहीं देता है तो उसका रूट बदल देते हैं। उसकी गाड़ी की जांच की जाती है। अगर कोई गड़बड़ी मिलती है तो चार्जशीट भी दी जाती है। दिवाली, शादियों के सीजन में लक्ष्य ज्यादा रहता है, जबकि श्राद्ध और नवरात्र के दौरान यह कम रहता है।
— सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि समान काम करने वालों को समान वेतन दिया जाए, लेकिन रोडवेज के बस सारथी और बस एजेंट्स के वेतन में भारी अंतर है। इस अंतर को खत्म किया जाना चाहिए।
मुन्ना लाल शर्मा, संरक्षक, राजस्थान परिवहन संयुक्त कर्मचारी फेडरेशन