25 से ज्यादा कलेक्टर आए और चले गए
सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबीटेट (सीटीएच) एरिया का नोटिफिकेशन वर्ष 2007-08 में हुआ था। 82 गांवों की 81 हजार हेक्टेयर जमीन इस एरिया में शामिल की जानी थी, लेकिन प्रशासन ने जमीन का नामांतरण सरिस्का के नाम नहीं किया। 17 साल में 25 से ज्यादा कलेक्टर आए और चले गए। एसडीएम अलवर के पद पर भी 30 लोगों की तैनाती की गई, लेकिन किसी ने इस जमीन को सरिस्का के नाम करने की हिम्मत नहीं जुटाई।
नए अफसरों ने कमान संभाली
इस मुद्दे को राजस्थान पत्रिका ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तो नाहरगढ़ वन एवं वन्य जीव संरक्षण समिति ने एनजीटी में वाद दायर किया। कहा कि प्रशासन ने जमीन सरिस्का के नाम नहीं की। वहां से आदेश होने के बाद प्रशासन हरकत में आया, लेकिन पूर्व कलेक्टर व एसडीएम फिर से इस मामले को पेंडिंग करते गए। नए अफसरों ने कमान संभाली तो दो माह में ही जमीन के नक्शों का डिजिटलाइजेशन हो गया और 24 दिसंबर को 43,061 हेक्टेयर जमीन सरिस्का के नाम हो गई।
अब इस जमीन पर अतिक्रमण हटाने का जिमा वन विभाग का
अब तक 43 हजार हेक्टेयर जमीन प्रशासन के पास थी, लेकिन अब वन विभाग के नाम हो गई। अब इस जमीन पर कॉमर्शियल गतिविधियों (होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट आदि) पर कार्रवाई करने का दायित्व वन विभाग पर आ गया है। इसके साथ होटल संचालकों में भी हड़कंप मचा हुआ है। रूंध शाहपुर, कालीखोल, राजगढ़ के बीघोता, टहला के नाडू, उमरी देवरी, बरवा डूंगरी, दबकन, टहला, भानगढ़, दौलपुरा, थानागाजी, प्रतापगढ़ का सिली बावड़ी, पचपड़ी, हमीरपुर, बालेटा, कुशालगढ़ की जमीन शामिल है। प्रशासन के सर्वे में अन सेवड़ भूमि 16 गांवों की 50,132 हेक्टेयर है।
नोटिफिकेशन के आधार पर सरिस्का के नाम जमीन कर दी गई है। बाकी जमीन का यूटेशन भी जल्द ही पूरा हो जाएगा। – प्रतीक जुईकर, एसडीएम अलवर एनजीटी के आदेश पर प्रशासन ने सरिस्का के नाम जमीन की है, यह बड़ा निर्णय है। यह कार्य 17 साल पहले ही हो जाना चाहिए था। खैर, देर आए दुरुस्त आए। यह राजस्थान पत्रिका व नाहरगढ़ वन्यजीव समिति की जीत है। — राजेंद्र तिवारी, अध्यक्ष, नाहरगढ़ वन एवं वन्यजीव संरक्षण समिति