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बैंगलोर

मानव रेटेड एलवीएम-3 से लांच होगा गगनयान-1

एक दशक पहले भारत ने बढ़ाया था मानव मिशन की ओर पहला कदम
तिथियों के संयोग पर गगनयान-1 प्रक्षेपण की तैयारियां शुरू

बैंगलोरDec 24, 2024 / 08:03 pm

Rajeev Mishra

मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के तहत बिना चालक दल वाले पहले गगनयान-1 मिशन के प्रक्षेपण की तैयारियां श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर शुरू हो गईं। संयोग से गगनयान-1 मिशन की तैयारियां ठीक उसी दिन शुरू हुई हैं जिस दिन 10 साल पहले 3775 किलोग्राम वजनी मानवरहित कू्र मॉड्यूल को भी पहली बार अंतरिक्ष भेजकर वापस बंगाल की खाड़ी में उतारा गया था। तब, मिशन के निदेशक एस.सोमनाथ थे जो अब, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष हैं।
इसरो ने कहा है कि, 18 दिसम्बर सुबह ठीक 8.45 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) में मानव रेटेड लांच व्हीकल (एचएलवीएम-3) के इंटीग्रेशन का कार्य प्रारंभ हुआ। ठीक दस साल पहले 18 दिसम्बर 2014 को श्रीहरिकोटा से लगभग 1600 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में अशांत समुद्र लहरों से तटरक्षक बलों ने कू्र मॉड्यूल को रिकवर किया था जिसे 126 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद तीन पैराशूटों की मदद से नियंत्रित तरीके से वापस उतार लिया गया था। वह, अंतरिक्ष से वापस आने का पहला परीक्षण था और उसी परीक्षण से गगनयान मिशन की नींव पड़ी। तब से अब तक, इसरो ने लंबा सफर तय कर लिया है। एलवीएम-3 प्रक्षेपणयान को अब मानव रेटेड बनाया जा चुका है। यानी, विश्वसनीयता की कसौटी पर यह रॉकेट इतना भरोसेमंद हो चुका है कि, इससे अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।
मानव रेटेड यानी रक्षा कवच से सुसज्जित
मानव रेटेड लॉच व्हीकल (एचआरएलवी) तीन चरणों (थ्री-स्टेज) वाला 53 मीटर ऊंचा और 640 टन वजनी रॉकेट है। इसकी क्षमता 10 टन क्षमता वाले पे-लोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने की है। मानव सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इसमें रक्षा कवच के तौर पर कू्र एस्केप सिस्टम (सीईएस) लगाया गया है जो, लांच पैड से लेकर वायुमंडल में कू्र मॉड्यूल के अलग होने तक किसी भी आपात स्थिति में अंतरिक्षयात्रियों को अलग करते हुए सुरक्षित धरती पर लाएगा।
एक साथ इसरो के कई केंद्रों पर तैयारियां
गगनयान-1 मिशन की तैयारियां एक साथ कई इसरो केंद्रों पर चल रही हैं। इसरो ने कहा है कि, ठोस मोटर बूस्टर (एस-200) को कंट्रोल सिस्टम और एवियोनिक्स से जोड़ा जा रहा है। तरल चरण एल 110 और क्रायोजेनिक चरण सी-32 पहले ही श्रीहरिकोटा स्थित लांच परिसर में है। कू्र एस्केप सिस्टम की सभी प्रणालियां भी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पहुंच गई हैं। तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में कू्र मॉड्यूल का इंटीग्रेशन किया जा रहा है वहीं, बेंगलूरु स्थित प्रो.यूआर राव उपग्रह केंद्र में सर्विस मॉड्यूल का इंटीग्रेशन हो रहा है।
एक दशक पहले रखी थी बुनियाद
इसरो ने कहा है कि, दस साल पहले भेजे गए एलवीएम3/केयर मिशन का मुख्य उद्देश्य धरती के वातावरण में पुन: प्रवेश कर सफलतापूर्वक बंगाल की खाड़ी में उतरना था। उस मिशन में रॉकेट की जटिल प्रक्रियाओं खासकर एयरोडायनेमिक और कंट्रोल विशेषताओं, तापीय प्रतिरोध, क्लस्टर फॉरमेशन में पैराशूट के संचालन, एयरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ कू्रमॉड्यूल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने आदि की का परीक्षण हुआ। तकनीकी सफलता के दृष्टिकोण से वह मिशन मील का पत्थर साबित हुआ और इस बार उसी मिशन से मिले आंकड़े और तकनीक को आगे बढ़ाया जाएगा। तब, एस. सोमनाथ मिशन निदेशक थे जो, आज इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव हैं। वहीं, एलवीएम3/केयर मिशन के पे-लोड निदेशक एस.उन्नीकृष्णन नायर अब वीएसएसएसी के निदेशक हैं।

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