मानव रेटेड लॉच व्हीकल (एचआरएलवी) तीन चरणों (थ्री-स्टेज) वाला 53 मीटर ऊंचा और 640 टन वजनी रॉकेट है। इसकी क्षमता 10 टन क्षमता वाले पे-लोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने की है। मानव सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इसमें रक्षा कवच के तौर पर कू्र एस्केप सिस्टम (सीईएस) लगाया गया है जो, लांच पैड से लेकर वायुमंडल में कू्र मॉड्यूल के अलग होने तक किसी भी आपात स्थिति में अंतरिक्षयात्रियों को अलग करते हुए सुरक्षित धरती पर लाएगा।
गगनयान-1 मिशन की तैयारियां एक साथ कई इसरो केंद्रों पर चल रही हैं। इसरो ने कहा है कि, ठोस मोटर बूस्टर (एस-200) को कंट्रोल सिस्टम और एवियोनिक्स से जोड़ा जा रहा है। तरल चरण एल 110 और क्रायोजेनिक चरण सी-32 पहले ही श्रीहरिकोटा स्थित लांच परिसर में है। कू्र एस्केप सिस्टम की सभी प्रणालियां भी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पहुंच गई हैं। तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में कू्र मॉड्यूल का इंटीग्रेशन किया जा रहा है वहीं, बेंगलूरु स्थित प्रो.यूआर राव उपग्रह केंद्र में सर्विस मॉड्यूल का इंटीग्रेशन हो रहा है।
इसरो ने कहा है कि, दस साल पहले भेजे गए एलवीएम3/केयर मिशन का मुख्य उद्देश्य धरती के वातावरण में पुन: प्रवेश कर सफलतापूर्वक बंगाल की खाड़ी में उतरना था। उस मिशन में रॉकेट की जटिल प्रक्रियाओं खासकर एयरोडायनेमिक और कंट्रोल विशेषताओं, तापीय प्रतिरोध, क्लस्टर फॉरमेशन में पैराशूट के संचालन, एयरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ कू्रमॉड्यूल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने आदि की का परीक्षण हुआ। तकनीकी सफलता के दृष्टिकोण से वह मिशन मील का पत्थर साबित हुआ और इस बार उसी मिशन से मिले आंकड़े और तकनीक को आगे बढ़ाया जाएगा। तब, एस. सोमनाथ मिशन निदेशक थे जो, आज इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव हैं। वहीं, एलवीएम3/केयर मिशन के पे-लोड निदेशक एस.उन्नीकृष्णन नायर अब वीएसएसएसी के निदेशक हैं।