बांसवाड़ा। कई जनजाति किसान भले ही उच्च शिक्षित न हों, पर तकनीक का दामन थाम उन्नति की राह पर चले पड़े हैं। परंपरागत खेती से दीगर फल और सब्जियों की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। इस आर्थिक बदलाव की कड़ी में जिले के कुछ किसानों ने तरबूज की खेती करना भी शुरू किया है।
बस्सी गांव के जिथिंग वसुनिया बताते हैं कि इस समय में तरबूज करते हैं। इसके अलावा वो टमाटर और मिर्च की भी खेती करते हैं। इसकी सिंचाई के लिए ड्रिप व्यवस्था कर रखी है। क्योंकि क्षेत्र में पानी की कमी है। इस कारण ही अब बारिश तक खेत खाली छोडऩा पड़ेगा।
60 दिन में मिल जाते हैं 2 लाख से ज्यादा
बस्सी गांव के जिथिंग वसुनिया बताते हैं कि वे महज कक्षा 8 तक पढ़े हैं। बीते चार वर्ष से वो तरबूज की खेती कर रहे हैं। जिसमें बुवाई, मल्चिंग, खाद इत्यादि में 45-60 हजार रुपए का खर्च आता है और 60 से 70 दिन में तरबूज खेत से बाहर आ जाता है। जिससे उन्हें तकरबीन 2 लाख 30 हजार रुपए से 2 लाख 40 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है। खर्चा हटाकर तकरीबन 1.5 लाख के आसपास की बचत हो जाती है। यदि नुकसान न हो तो।
खेत में उगे तरबूजों को दिखाते किसान गणेश।
कई साल से कर रहे हैं तरबूज की खेती
अरथूना क्षेत्र के दवेला गांव के गणेश भाई ने कई वर्ष पूर्व तरबूज की खेती शुरू की। किसान गणेश बताते हैं कि वे पहले फल और सब्जियों की खेती नहीं करते थे। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने तरबूज की खेती शुरू की और तकरीबन 4 बीघा में वे तरबूज की खेती करते हैं। वह महज 2 महीने में दो लाख रुपए तक कमाई कर लेते हैं।