महावर मोहल्ला स्थित जामुनिया कुआ जो सार संभाल के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हो रहा है। साइडों के पत्थर उखड़ गए है। पूर्व में इस कुएं में कई हादसे हो चुके हैं। फिर भी मुंडेर का निर्माण नहीं करवाया गया है। कभी यह कुआं आधे कस्बे की प्यास बुझाता था। बस स्टैंड का कुआं, शीतला कुआं, मालियो का मोहल्ला, $फ$कीर मोहल्ले का कैलवाला कुआं, खारिया कुआं, मोती महाराज का कुआं सहित दर्जनों कुएं बिना मुंडेर के ही हैं।
कस्बे के लोगों ने कुछ कुओं को अनुपयोगी व समय की जरूरत न समझते हुए जमींदोज कर दिया है। कुछ का ढकान कर दिया है। यहां गढ़ परिसर स्थित ऐतिहासिक कुएं को भी दुर्घटना की आशंका के चलते एक दशक पूर्व विद्यालय प्रशासन ने मिट्टी, कचरा सहित मिट्टी भरवा कर बंद करवा दिया। महावर मोहल्ले का कुआ, राजपूत मोहल्ले की कुई, मुख्य बाजार की कुई, मंदिर चौक का कुआं, नाहरगढ़ मार्ग के कुएं को भी जमींदोज कर दिया गया है। जैन मंदिर के कुएं का ढकान व मुस्लिम मोहल्ले की कुई का भी ढकान कर दिया गया है।
बना रहता है खतरा बराना मार्ग पर खेतों में स्थित दो बिना मुंडेर के कुएं जो चंद कदम की दूरी पर है। जो रोड के बाई व दाई ओर स्थित हैं। इसी प्रकार नाहरगढ़ मार्ग, किशनगंज मार्ग बजरंगगढ़ मार्ग से पंडाली मार्ग, पिपलोद से अरदाण्ड मार्ग भी कई कुएं बिना मुंडेर के ही जीर्ण शीर्ण स्थिति में हैं।
पाइपलाइन डली तो कुओं का महत्व घटा कुएं अब बीते जमाने की बात हो गई है। दो दशक पूर्व तक कुएं ग्रामीणों की ङ्क्षजदगी का अहम हिस्सा हुआ करते थे। कुएं से जहां किसान फसलों में ङ्क्षसचाई करते थे तो। वहीं गांवों में महिलाएं पेय जल के लिए इनका इस्तेमाल करती थी। मवेशियों को कुओं पर ही पानी पिलाते थे। अब बदलते परिवेश में कुओं की जगह नल कूप ने ले ली तो गांवों में सरकार की ओर से पेय जल के लिए टंकियों का निर्माण कर दिया। ऐसे में अब कुओ पर लोगों की निर्भरता व जरूरत खत्म हो गई है।