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बाड़मेर

Barmer: गरीबी से लड़कर खुद Doctor बने, अब Free में बना रहे…13 साल में 140 बच्चे हुए सफल

Free Coaching For NEET: बाद में लगातार मेहनत और बाहरी मदद से डॉक्टर बनने की राह पर चल पड़ा। आज डॉक्टर भरत बाड़मेर जिला अस्पताल में कार्यरत हैं।

बाड़मेरJul 01, 2025 / 08:15 am

JAYANT SHARMA

Dr. Bharat or Students – Patrika

Doctor Bharat Saran Success Story: आज डॉक्टर्स डे पर बात उस डॉक्टर की जिसने सफल होने के लिए गरीबी से लड़ाई लड़ी और उसके बाद इसे ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। खुद तो डॉक्टर बने ही साथ ही खुद के जैसे बच्चों की तलाश शुरू कर दी ताकि उनको भी उनकी मेहनत का फल दिया जा सके। उसके बाद साथियों और अन्य लोगों ने मदद को हाथ बढ़ाये और 13 साल में मानों डॉक्टर बनाने की फैक्ट्री ही लगा दी। तेरह साल में सभी की मदद से 140 बच्चों को सफल कर दिया। अब नया बैच शुरू कर दिया गया है। यह कहानी लगातार जारी है।

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हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बाड़मेर जिले के ग्रामीण इलाकों की। जहां से डॉक्टर बनकर निकले भरत सारण आज गरीब बच्चों को डॉक्टर बनाने में मदद कर रहे हैं। हाल ही में नीट का परिणाम आने पर पता चला कि उनकी संस्था में पढ़ने वाले पचास बच्चों में से 33 का सिलेक्शन हो गया है। भरत सारण और उनकी टीम बाड़मेर के ग्रामीण इलाकों में 50 विलेजर्स जैसी एक संस्था चलाते हैं। इस संस्था में पढ़ने वाले बच्चों से फीस नहीं ली जाती। फिर चाहे कोचिंग के साथ ही रहना और खाना भी क्यों ना हो…. सब कुछ एकदम फ्री है।
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डॉक्टर भरत बताते हैं कि साल 2012 में इस संस्थान की हमने शुरुआत की थी। मेरा बचपन सामान्य से निचले स्तर पर गुजरा। आर्थिक हालात बेहद सामान्य रहे। किसान परिवार से ताल्लुक रहा, लेकिन उससे सिर्फ सामान्य पढ़ाई कर सका। बाद में लगातार मेहनत और बाहरी मदद से डॉक्टर बनने की राह पर चल पड़ा। आज डॉक्टर भरत बाड़मेर जिला अस्पताल में कार्यरत हैं।
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डॉक्टर भरत ने बताया कि 2012 में हमने संस्था शुरू की। धीरे-धीरे लोग जुड़ते चले गए। अब हर साल पचास बच्चों का बैच बनाते हैं जिनमें कक्षा दस में 75 फीसदी से ज्यादा नंबर आए हों। माता-पिता बेहद ही गरीत तबके से हों। उनका एक टेस्ट लिया जाता है और उसमें सफल होने पर उनकी नीट की तैयारी शुरू करा दी जाती है। पचास से साठ फीसदी बच्चे सफल होते हैं। भरत सारण ने बताया कि उनका संस्थान 13 साल में 140 बच्चों को सफलतापूर्वक नीट पास करा चुका है। जो बच्चे मजदूरी करने को अपना भाग्य बना चुके थे वे अब डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं। संस्थान की वित्त संबंधी मदद देने के लिए आईएएस, आईपीएस और अन्य कई भामाशाह हैं। ये तमाम लोग गुप्त तरीके से मदद भेजते हैं और इसी से संस्थान चलता है।

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