Baster Dussehra 2024: ऐसा होता है मुरिया दरबार
Baster Dussehra 2024: इस मुरिया दरबार में सामने मंच पर बस्तर राजपरिवार के सदस्य सहित अन्य जनप्रतिनिधि विराजते हैं। ग्रामीण जनप्रतिनिधि के तौर से आए मांझी, चालकियों की बैठने की व्यवस्था रहती है। एक-एक कर मांझी चालकी आदिवासी समाज एवं उनके गावों की समस्याओं को सुनाते हैं। इसके बाद जनप्रतिनिधि उनका समाधान करने की घोषणा करते हैँ। संतुष्ट होने के बाद दरबारियों की ससम्मान विदाई होती है।
परंपरागत वेशभूषा में आते हैं ग्रामीण
करीब 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही है यह परंपरा आज भी जीवित है। मुरिया दरबार इस दौर में भी बस्तर की राजशाही की एक निशानी जो कायम है। इसमें दरबारी सदस्य परम्परागत वेशभूषा पगड़ी और कुर्ता, धोती पहन कर आते हैँ। जानकारों के मुताबिक
मुरिया दरबार की शुरुआत 8 मार्च 1876 को हुई थी। तब से जगदलपुर के सिरहासार भवन में यह मुरिया दरबार सजता आया है। दशहरा का अनिवार्य धार्मिक विधान होने की वजह से इसे बंद करवाना मुमकिन नहीं है।
पहले राजा करते थे सुनवाई अब जनप्रतिनिधि
मुर का अर्थ, हल्बी में प्रारंभ या मूल होता है, प्राचीन काल से बस्तर के मूल निवासियों के लिए इस से उपजे मुरिया संबोधन का उपयोग किया जा रहा है।
मुरिया दरबार में यह ग्रामीण पहुंचते थे। वे राजा से सीधा संवाद करते अपनी समस्याओं का निराकरण करवाते थे। आजादी के बाद परंपरा में बदलाव आ गया इन ग्रामीणों की समस्याएं सुनने अब सांसद, मंत्री व कभी कभी मुख्यमंत्री भी पहुंचते हैं। यहां पर मांझी-चालकियों के जरिए वे बस्तर से रूबरू होते हैं। यहां पर उनकी बताई कई समस्याओं का तत्काल निराकरण किया जाता है।
कोरोना काल में भी नहीं टूटी परंपरा
विश्वव्यापी महामारी के दौर में भी
बस्तर दशहरा मनाया गया। उस साल भी मुरिया दरबार सजा था। इस दरबार में मांझी- चालकियों को मास्क लगाकर व सोशल डिस्टेंस कायम रखकर बिठाया गया। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने इनकी समस्याओं को सुना व निराकृत किया।