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पत्रिका पड़ताल में बड़ा खुलासा, एमपी के अफसर और नेता हर साल बढ़ा रहे दाम, क्यों महंगी बिजली?

Mehangi Bijli: मध्य प्रदेश में 24 साल पहले तक बिजली बोर्ड था। इसका प्रबंधन कई राज्यों के लिए नजीर था। लेकिन बिजली के जरिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का चस्का ऐसा चढ़ा कि अच्छे खासे बोर्ड की वित्तीय स्थिति गड़बड़ा गई, पत्रिका पड़ताल में हुआ खुलासा कर देगा हैरान, पढ़ें पूरी खबर

भोपालJan 22, 2025 / 01:59 pm

Sanjana Kumar

Mehangi Bijli

Mehangi Bijli in MP

Mehangi Bijli in MP: हरिचरण यादव. मध्य प्रदेश ने 24 साल में ऊर्जा सेक्टर में कई कीर्तिमान गढ़े, लेकिन बिजली वितरण कंपनियां घाटे में गिरना शुरू हुईं तो बाहर नहीं आ सकीं। अभी 3 बिजली वितरण कंपनी मध्य, पूर्व व पश्चिम क्षेत्र का घाटा 64,843 करोड़ से अधिक है। अफसर और नेता घाटे का हवाला देकर हर साल बिजली महंगी करा रहे हैं। जनता पर बोझ पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश में 24 साल पहले तक बिजली बोर्ड था। इसका प्रबंधन कई राज्यों के लिए नजीर था। 1985 में तो कांग्रेस की तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार ने इस बोर्ड से तेंदूपत्ता संग्राहकों को भुगतान और राज्य के कुछ कर्मियों को वेतन के लिए रुपए लिए थे। लेकिन बिजली के जरिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का चस्का ऐसा चढ़ा कि अच्छे खासे बोर्ड की वित्तीय स्थिति गड़बड़ा गई। इसके बाद ऊर्जा सेक्टर में सुधारों के नाम पर कंपनियां बना दीं।

बिजली कंपनियों के घाटे में जाने के ये 3 बड़े कारण

–प्रति 100 यूनिट में से कुछ कंपनियों में 18 और कुछ में 27 यूनिट बिजली चोरी हो जाना।

–उपभोक्ताओं पर वर्षों से बकाया राशि का वसूल नहीं हो पाना।
–कुछ सरकारों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए बिजली में विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली छूट की राशि कंपनियों को समय पर भुगतान नहीं करना।

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IAS नहीं होते थे मुखिया तब भी फायदे में था बोर्ड

मध्य प्रदेश बिजली बोर्ड से 1999 में एडिशनल चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर केके ससेना बताते हैं कि तब बोर्ड में सभी प्रमुख पदों पर विभागीय अफसर थे। उन्हें जमीनी जानकारी थी। ज्यादातर समय चेयरमैन भी विभाग से ही होते थे। तब के विभागीय अफसर निर्णय लेने, जमीनी स्तर पर पालन कराने, सरकार के सामने मजबूती से बोर्ड के हित रखने में हिचकते नहीं थे।
राजनीतिक दबाव बर्दाश्त नहीं करते थे, इसलिए बोर्ड अच्छा चला। तब बोर्ड के मुखिया आइएएस नहीं होते थे, तब भी ये स्थिति थी। अब तो कंपनियों में सभी प्रमुख पदों पर दक्ष आइएएस हैं। तब भी कंपनियां घाटे में हैं और जनता नुकसान भुगत रही है, सरकार को इस स्थिति की पड़ताल करनी चाहिए।
MP Electricity Companies

विद्युत मंडल के बांड की देश में थी मांग

मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के अतिरिक्त मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त राजेंद्र अग्रवाल ने बताया, 1948 में विद्युत सह्रश्वलाई अधिनियम आया। 1956 में बोर्ड बना। बोर्ड ने विषम हालात में काम कर कई क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई। तब बोर्ड द्वारा कर्ज के लिए जारी करने वाले बांड की जारी करने के कुछ समय में ही खरीद लिए जाते। 2000 में विद्युत सुधार अधिनियम आया। यहीं से बिजली कंपनियों का गठन शुरू हुआ। 2003 तक कंपनियों ने काम शुरू किया। तब कांग्रेस की सरकार थी।

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