MP News Mung Farming: किसानों द्वारा मूंग (MP News Mung Farming) को जल्दी सुखाने के लिए खरपतवार नाशक पैराक्वेट एवं ग्लाइफोसेट का उपयोग किया जा रहा है, इससे फसल जल्दी पक जाती है। इसका दुष्प्रभाव वातावरण के साथ ही उत्पादित मूंग का सेवन करने वाले आमजन पर भी होता है। इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के बढ़ने की संभावना होती है। वहीं खरपतवार नाशकों का उपयोग मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देता है, जिससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता घटती है। साथ ही ग्रीष्मकालीन मूंग में कम से कम 3-4 बार सिंचाई करना पड़ती है। इससे भूमि का जल स्तर निरंतर नीचे जा रहा है।
इसी प्रकार पौध संरक्षण रसायनों के अनियंत्रित उपयोग के परिणामस्वरूप हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन में रासायनिक अवशेषों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप बीमारियों और नवीन स्वास्थ्य विकारों के मामलों में वृद्धि हुई है।
अधिक लगता है पानी, भू-जल स्तर खिसक रहा
प्रो. (डॉ.) तोमर का कहना है कि किसान गर्मी में बड़े स्तर पर उक्त खेती कर रहे हैं, जो आमतौर पर खरीफ में की जाती रही है, उसी समय यह पर्यावरण के लिए अनुकूल भी थी क्योंकि इसकी खेती वर्षा आधारित परिस्थितियों में की जाती थी। मूंग की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया की मौजूदगी होने से यह फसल मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है। यह फसल गर्मियों में उगाई जाने लगी है, इसलिए इससे भू-जल स्तर का अत्यधिक दोहन लगातार हो रहा है। किसान मूंग की बोनी जल्द करने के लिए फसलों के अवशेषों को जलाने पर जोर देते हैं, जिसके दुष्परिणाम सामने आते हैं।
अधिक टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल पद्धतियां अपनाना ही अच्छा
इसके अलावा गर्मी के मौसम में मूंग की अतिरिक्त सिंचाई से बिजली की खपत में भी वृद्धि होती है। उनका कहना है कि खेती के लिए अधिक टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल पद्धतियों को अपनाना ही आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छा होगा। ग्रीष्मकालीन मूंग, जो प्राकृतिक रूप से पकता है, उसमें कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक का उपयोग न करें।
लोग मूंग का सेवन करना छोड़ रहे हैं
प्रदेश में मूंग की खेती के साथ इसके खतरे भी बढ़ रहे है। नर्मदापुरम, हरदा समेत कई जिलों के कई किसान मूंग की फसल में अधिक फूल लगने, दाने मोटे व चमकीले होने और पककर तैयार फसल को जल्दी सुखाने के लिए कई तरह की जहरीली दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके चलते लोग मूंग का सेवन करना छोड़ रहे हैं। यहां तक कि अब उपभोक्ता विक्रेताओं से पूछने लगे हैं कि मूंग किस जिले में पैदा हुई थी।
सरकार भी किसानों को दिलवा रही समझाइश
असल में कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग कर पैदा की जाने वाली मूंग की गुणवत्ता और जमीन का संतुलन बिगड़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार भी उक्त खेती में कीटनाशकों का उपयोग करने वाले जिलों के किसानों को पहले विशेषज्ञों के जरिए समझाइश दिलवा रही है।