एक महीने में 10 लाख 75 हजार रोक रहे
जिला कार्यालय में शिष्यवृत्ति की जो राशि सामग्री सप्लाई के नाम पर रोकी जा रही है वह प्रति छात्र ५०० रुपए है। जिले में 26 पोटाकेबिन छात्रावास हैं और उनमें 2150 सीटें हैं। अगर पूरी सीट भरती है तो 10 लाख 75 हजार रुपए की बचत एक महीने में होती है। बीजापुर में 6, भैरमगढ़ में 9, भोपालपट्टनम में 5 और उसूर ब्लॉक में 6 छात्रावास संचालित हो रहे हैं। शासन से प्रति छात्र को 1500 शिष्यवृत्ति स्वीकृत है, जिसमें 1000 छात्रावास अधीक्षकों को राशन व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिए जाते हैं और शेष 500 रुपए सामग्री क्रय के नाम पर रखी जाती है।अधीक्षक बनने के लिए नेताओं तक लगती है दौड़
पोटाकेबिन आश्रमों में अधीक्षक बनने के लिए शिक्षक नेता-जनप्रतिनिधियों के पास सिफारिशें लेकर जाते हैं और मोटी रकम भी खर्च करते हैं। ऐसे में इनका मकसद बच्चों की देखभाल नहीं, शिष्यवृत्ति की मलाई काटना होता है। लाखों का चढ़ावा चढ़ाने के बाद अधीक्षक का पद मिलता है और जितना खर्च करते हैं उससे ज्यादा निकालने के लिए बंदरबांट किया जाता है। अफसरों से भी अधीक्षकों को खुली छूट मिलती है।दो पर एफआईआर बाकी पर कब?
पोटाकेबिन में चल रहे बंदरबांट की जब शिकायतें पहुंचीं तो कलेक्टर ने तुरंत जांच बिठाई। जांच में दो कर्मचारी प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए, जिन पर एफआईआर दर्ज करवाई गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या बाकी जिम्मेदार अफसर बच जाएंगे? क्या इस भ्रष्टाचार के असली सूत्रधारों पर भी कार्रवाई होगी? सरकार अगर वाकई आदिवासी बच्चों के पेट में निवाला और शिष्यवृत्ति पहुंचाना चाहती है तो इस पूरे सिस्टम की सफाई जरूरी है। वरना ऐसे मामले बार-बार सामने आते रहेंगे और बच्चों का हक अफसरों की थाली में जाता रहेगा।शिष्यवृत्ति में भी लाखों का घपला
बिना बिल के 42 लाख निकालना तो एक छोटा उदाहरण, पोटाकेबिन में जारी है बड़ा खेल।1500 रुपए की शिष्यवृत्ति में सिर्फ 1000 रुपए दे रहे।
500 रुपए जिला स्तर पर रोक रहे इसी में बड़ा खेल।
एक बच्चे में जितना खर्च करना चाहिए कर नहीं रहे।