ऐसे चल रहा कुचक्र बच्चों को पढ़ाने, इंजीनियर, डॉक्टर, कलक्टर, आईपीएस बनाने के साथ परिवार को पालने की कोशिश लोगों को 10 प्रतिशत ब्याज वाले सूदखोरों के जाल में फंसा रही। ऐसा भी नहीं है कि उधार रुपया लेने वाले लोग कर्ज चुका नहीं रहे। लोग कर्ज से कई गुना ज्यादा ब्याज दे चुके, लेकिन अब भी समाज में फिल्म मदर इंडिया के सुक्खीलाला जैसे कैरेक्टर जिंदा हैं, जो लोगों को जाने कौन से ब्याज के गणित में उलझा कर उनका जीवन ही लील रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि ऐसे हाल संभाग मुयालय से गांव तक एक से हैं। बस सुक्खीलाला की जगह सूदखोरों के नाम बदले हुए हैं।
ब्लैंक चेक व एग्रीमेंट पेपर लेकर दे रहे लोन जानकारी के मुताबिक, साहूकार प्रतिभूत ऋण यानी कोई वस्तु गिरवी रखकर लिए गए रुपए पर 12 से 14 प्रतिशत वार्षिक ब्याज ही वसूल सकता है। जबकि सूदखोर ब्लैंक चेक, एग्रीमेंट पेपर पर हस्ताक्षर कराकर रुपया दे रहे हैं। कहने को तो सूद चक्रवृद्धि ब्याज के अनुसार वसूलते हैं। लेकिन ब्याज दर वार्षिक या अर्द्धवार्षिक नहीं, मासिक होती है और वह भी दिन-रात चलती है। ब्याज पर ब्याज वसूलते हैं।
ऋणजाल: एक कर्ज चुकाने को दूसरा कर्ज सूदखोरों ने बड़ी चालाकी से जाल बुना है। पहले कर्ज देते हैं। फिर वसूली के लिए परेशान करते हैं। दूसरा सूदखोर मददगार बनकर सामने आता है। ब्याज चुकाने को नया कर्ज दे देता है। उलझन में पड़ा आदमी दूसरा कर्ज लेकर पहले कर्ज का ब्याज चुकाता है। वह संभल नहीं पाता, तब तक दो कर्जों का ब्याज एक साथ चुकाने का दबाव पड़ना शुरू होता है। अब यहां से उसकी व्यवस्था बिगड़ने लगती है। आय के स्रोत दुकान, खेती पर नजर गड़ाए सूदखोर वहां अपना कब्जा जमाते हैं, जिससे किस्त टूटनी शुरू होती है। इसके बाद ब्याज का ब्याज ही मूलधन से कई गुना अधिक हो जाता है और आदमी कर्जों के इस मकड़जाल से बाहर निकलने के बाद मकान, दुकान, जमीन बेचने लगता है। इसके चक्कर में लोग इतने तनाव में आ जाते हैं कि खुद आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं।