इन दिनों राठी और थारपारकर गायों में प्रजनन (ब्यात) सबसे ज्यादा होता है। यही वजह है कि विश्वविद्यालय के राठी और थारपारकर के फार्म में 60-70 बछड़े-बछड़ी इन दिनों कुलांचे मार रहे हैं। भीषण गर्मी जहां जर्सी, हॉलिस्टिन जैसी विदेशी और मिश्रित नस्ल की गायों के दूध उत्पादन, प्रजनन और व्यवहार पर प्रतिकूल असर डाल रही है। वहीं, राठी और थारपारकर मौसमी अनुकूलता के चलते प्रजनन कर रही हैं और दूध उत्पादन पर भी कोई असर नहीं दिखता।
गर्मी-सर्दी के अनुरूप खुद को ढालने की ताकत
वेटरनरी विश्वविद्यालय के पशु अनुसंधान केन्द्र (थारपारकर) बीछवाल के बाड़े में भरी दुपहरी में भी चटख सफेद रंग, चमकीली आंखों वाली गायों पर भीषण गर्मी का किंचित मात्र भी असर नजर नहीं आया। इन गायों की संख्या बहुत कम बची है। ऐसे में केन्द्र में रखी करीब 250 थारपारकर गायों का ऐसा समूह भी कहीं अन्य देखने को नहीं मिलता। सफेद रंग की होने से इसे सबसे खूबसूरत गाय मानते हैं। गर्मी में थारपारकर का सफेद रंग और निखर आता है। जबकि सर्दी में रंग हल्का गहरा पड़ जाता है। ऐसा, इसमें मौसम के अनुकूल खुद को ढालने के विशेष गुण के चलते है।
शर्मिला स्वभाव…बछड़ी को छूना भी गवारा नहीं
पशु अनुसंधान केन्द्र राठी में करीब 300 गाय व बछड़े-बछड़ी रखे हैं। यहां राठी नस्ल को संरक्षित किया गया है। हल्के और गहरे भूरे रंग की इन गायों के बछड़े-बछड़ी भी इस भीषण गर्मी में असहज नहीं हैं। केन्द्र के केयरटेकर बताते हैं कि राठी गाय अपने बच्चे (बछड़े या बछड़ी) को स्तनपान कराने के बाद ही दूध निकालने देती है। वैसे तो यह शर्मीली और शांत स्वभाव की है, लेकिन ब्यात के बाद इसे किसी का उसके बच्चे को छूना भी गवारा नहीं। इसीलिए इसे ममता की प्रतिमूर्ति के साथ मांओं की लोरी में भी स्थान मिला है।
देश का एक मात्र संस्थान
राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर देश का एकमात्र संस्थान है, जो देशी गायों की सबसे ज्यादा नस्लों का संरक्षण कर रहा है। यहां तीन पशु अनुसंधान केन्द्रों में थारपारकर, राठी, कांकरेज और साहीवाल नस्ल की गाएं हैं। चांदण (जैसलमेर) में भी थारपारकर और उदयपुर में गिर नस्ल की गायों का संरक्षण एवं संवर्द्धन केन्द्र है।
2.81 लाख की गाय और 2.11 लाख का सांड
पशु अनुसंधान केन्द्र थारपारकर के प्रभारी डॉ. मोहन लाल चौधरी बताते हैं, थारपारकर अब बहुत कम संख्या में बची हैं। गुणवत्तापूर्ण दूध और सुंदरता के चलते जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर और बीकानेर में इसकी प्रमुख मांग रहती है। पश्चिमी राजस्थान के विषम मौसम के प्रति अनुकूलता इसकी ताकत है। इस नस्ल की अनुमानत: करीब दो लाख गाय ही बची हैं। यहां से थारपारकर गाय 2.81 लाख और सांड 2.11 लाख रुपए में बेचा जा चुका है। यह अधिकांशत: बीमार नहीं पड़तीं, तो दवाइयों का उपयोग भी नहीं होता। लिहाजा, दूध में भी रसायन के अंश नहीं पाए जाते।
गर्मी-सर्दी का दूध उत्पादन पर असर नहीं
टॉपिक एक्सपर्ट- डॉ. विजय विश्नोई, प्रभारी, पशु अनुसंधान केंद्र राठी वेटरनरी विवि के विद्यार्थियों के रिसर्च और शिक्षण के लिए यहां देसी नस्ल की गायों को रखा गया है। करीब पांच दशक से यहां इनका संरक्षण और उन्नयन हो रहा है। साहीवाल, थारपारकर और रेड सिंधी तीन नस्लों के क्रॉस से राठी बनी है। रोजाना 5 से 15 लीटर दूध उत्पादन वाली राठी और थारपारकर दोनों के प्रजनन पर भीषण गर्मी और कड़ाके की ठंड का असर नहीं पड़ता। भरपूर रोग प्रतिरोधक क्षमता से बीमारियां नहीं लगतीं। राठी गाय श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले में सर्वाधिक है।