CG News: अपील की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की
जस्टिस रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की बेंच ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतिम बार देखे जाने का सिद्धांत तब काम आता है जब यह तय हो कि अभियुक्त और मृतक को अंतिम बार कब साथ देखा गया था। जीवित देखे जाने और मृतक के मृत पाए जाने के बीच का समय अंतराल महत्वपूर्ण है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी), धमतरी द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की। एडीजे कोर्ट ने अपीलकर्ता (आरोपी) को आईपीसी की धारा 302, 376 और 201 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 500 रुपए के जुर्माने से दंडित किया गया। साथ ही धारा 376 और 201 के तहत 7 साल के कठोर कारावास और 500 रुपए के जुर्माने से दंडित किया था।
यह है मामला
CG News: अपीलकर्ता कविलास पर आरोप थे कि महिला के साथ जबरन
यौन संबंध बनाए और विरोध करने पर उसने बिस्तर की चादर से उसका नाक और मुंह दबा दिया जिससे उसकी मौत हो गई। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने मृतका के पर्स से 1650 रुपए निकालकर खाने-पीने पर खर्च कर दिए और उसका मोबाइल और सिम तोड़कर बैटरी समेत लक्ष्मीनाथ नामक व्यक्ति के आंगन में फेंक दिया।
आरोपी ने अपनी अपील में तर्क दिया कि उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है और घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। आरोपी की दोषसिद्धि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर हुई इसके अतिरिक्त किसी भी गवाह ने अभियुक्त और मृतका को एक साथ नहीं देखा था।