चांटीडीह क्षेत्र के निवासी मंगली प्रसाद सोनी ने चारों धाम की यात्रा के बाद यह विचार किया था कि जो लोग चारों धाम नहीं जा सकते, उनके लिए चांटीडीह मंदिर में इन धामों की मूर्तियों की स्थापना की जाए, ताकि वे सभी श्रद्धालु इन धामों के दर्शन कर सकें। उन्होंने स्थानीय दुकानदारों से संपर्क किया और
महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगाने का आग्रह किया। यह पहल इतनी सफल हुई कि 10 वर्षों तक मंगली प्रसाद सोनी ने दुकानदारों को उनकी दुकानों से होने वाली हानि की भरपाई की, और धीरे-धीरे यह मेला बड़ा होता गया।
शिव मंदिर में ध्वज चढ़ाने की विशेष परंपरा
महाशिवरात्रि पर चांटीडीह शिव मंदिर में ध्वज चढ़ाने की परंपरा के दौरान श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह देखा जाता है। यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक अवसर बन जाता है, जिसमें सभी लोग एक साथ मिलकर ध्वज चढ़ाते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करती है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का कार्य भी करती है।
इस प्रकार, चांटीडीह शिव मंदिर और इसके साथ जुड़ी परंपराएं धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बन चुकी हैं, जो हर साल श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं और इस शहर की धार्मिक धरोहर का हिस्सा बनी हुई हैं। इस अवसर पर एक विशाल शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसमें बैंडबाजा पार्टी, बजरंग दल, शिव सेना, कुहार और किन्नर भी भाग लेते हैं।
यहां तीन दिन लगता है मेला
चांटीडीह में शिवरात्रि के दिन लगने वाला मेला तीन दिन तक चलता है, और हर साल बड़ी संया में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मेला अध्यक्ष दयाशंकर सोनी ने बताया कि हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर पूजा-अर्चना और मेला का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होते हैं। इस साल यह मेला 26 फरवरी को लगेगा 28 फरवरी तक चलेगा। और यह मंदिर शहर और क्षेत्र के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शहर और आसपास के गांवों के व्यापार को भी बढ़ावा देता है।