महल के नीचे पूर्व दिशा में भी बाग का निर्माण कराया था। बाग में गणेश मंदिर होने से गणेश बाग के नाम से जाना जाता है। बुजुर्गों का कहना है कि सुनते आ रहे कि रियासतकालीन शासकों ने महल के पास बाग का निर्माण राज परिवार के सदस्यों के सैर-सपाटा करने के लिए बनाया था। गणेश मन्दिर में गणगोर पूजन करती थी। बाद में इसे आम जन के लिए खोल दिया। आज भी बाग में स्थित गणेश मन्दिर में गणगौर पूजन की परपरा जारी है। गढ की बावड़ी से ही बाग को सिंचित करने के लिए पक्के धोरे बने हुए थे। बाग के स्थल जेल, विद्यालय सहित अन्य सरकारी भवन के निर्माण से गणेश बाग में अब गणेश प्रतिमा ही रह गई बाग नहीं रहा।
कनकसागर के किनारे स्थित द्वारिकाधीश बगीची को कुछ लोगों ने हर्बल पार्क के रूप में विकसित करने के लिए कई प्रकार कर पौधे लगाए थे। हर्बल पार्क को संरक्षण नहीं मिल पाया। पार्क की दीवार टूट गई, जिससे मरम्मत नहीं हो पाई। हर्बल पार्क से बागरियों की बगीची के बीच को सुरक्षा दीवार बनाकर पार्क के रूप में विकसित करने का कार्य शुरू किया, जिसे भी अधूरा ही छोड़ दिया। तालाब के लबालब होने से द्वरिकाधीश व बागरियो की बगीची पानी में डूबी हुई है।
नवलसागर तालाब के राजघाट के पास भी बाग का निर्माण कराया था, जिसे राम बाग का नाम दिया गया था। राम बाग उजड़ जाने से नामों निशां तक नहीं बचे है। सिर्फ विलायती बबूलों का जंगल बन गया। इसी तरह कनक सागर तालाब के किनारे भी बगीची का निर्माण हुआ था, जिसे आज भी बागरियों की बगीची के नाम से जाना जाता है, जो भी उजड़ जाने से खाका बनकर रह गई।
पालिकाध्यक्ष सरिता नागर का कहना है कि शहर के उद्यानों को विकसित कराने के लिए प्रस्ताव तैयार किए जाएंगे। प्रस्तावों की मंजूरी मिलते ही कार्य शुरू करवा दिया जाएगा।