पीएलआई योजना की सफलता
स्मार्टफोन के दम पर भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में तेज उछाल आया है, जिसका पूरा श्रेय सरकार की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को जाता है। इस योजना ने एप्पल जैसी विदेशी कंपनियों को भारत लाने में कामयाबी हासिल की, जिससे निर्यात बढ़ा और आयात घटा। अब घरेलू उत्पादन भारत की मांग का 99 प्रतिशत पूरा करता है।
एप्पल और फॉक्सकॉन का दबदबा
तमिलनाडु के फॉक्सकॉन प्लांट से एप्पल की आईफोन सप्लाई चेन ने 70 प्रतिशत निर्यात में योगदान दिया, जो कुल विदेशी शिपमेंट का 50 प्रतिशत है। पिछले साल की तुलना में फॉक्सकॉन से निर्यात में 40 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। वहीं, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने 22 प्रतिशत निर्यात में हिस्सा लिया, जिसने कर्नाटक में विस्ट्रॉन कारखाने को अपने कब्जे में लिया। टाटा और पेगाट्रॉन की भूमिका
तमिलनाडु के पेगाट्रॉन संयंत्र से 12 प्रतिशत निर्यात हुआ, जिसमें टाटा ने जनवरी 2025 में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी। दो ताइवानी कंपनियों के अधिग्रहण के साथ, टाटा समूह भारत में आईफोन का बड़ा उत्पादक बन गया है। सैमसंग ने भी 20 प्रतिशत निर्यात में योगदान दिया।
निवेश और रोजगार का बढ़ावा
पीएलआई योजना से दिसंबर 2024 तक 10,213 करोड़ रुपये का निवेश आया, जिससे 1.37 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हुईं और 662,247 करोड़ रुपये का उत्पादन हुआ। केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने कहा कि सरकार की नीतियों ने भारत को मोबाइल आयातक से निर्यातक देश में बदल दिया।
उत्पादन में पांच गुना इजाफा
मोबाइल फोन उत्पादन 2014-15 में 60 मिलियन से बढ़कर 2023-24 में 330 मिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले 10 साल में 5 गुना से ज्यादा की वृद्धि है। मूल्य के लिहाज से यह 19,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 422,000 करोड़ रुपये हो गया, जो 41 प्रतिशत सीएजीआर की रफ्तार से बढ़ा।
निर्यात में 78 प्रतिशत की उछाल
पीएलआई योजना शुरू होने के बाद, मोबाइल फोन निर्यात 2020-21 में 22,868 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 129,074 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 78 प्रतिशत सीएजीआर की वृद्धि दिखाता है। 2015 में 74 प्रतिशत आयातित मोबाइल अब 99.2 प्रतिशत मेड इन इंडिया हो गए हैं।