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छिंदवाड़ा

किसान समझ गए जीरो टिलेज पद्धति तो हर गांव में रुकेगी नरवाई की आग

टीम गांव-गांव पहुंचकर किसानों को जीरो टिलेज पद्धति से नरवाई-पराली का सदुपयोग करना सिखा रही

छिंदवाड़ाApr 01, 2025 / 11:56 am

prabha shankar

zero tillage method

सुपर सीडर के प्रदर्शन के दौरान अधिकारी व किसान।

खेतों में तैयार गेहूं फसल की कटाई लगभग 80 फीसदी पूरी हो गई है। इसके साथ ही किसान सफाई के बहाने पराली/नरवाई में आग लगाने की तैयारी में है। प्रशासन ने नरवाई में आग लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि विभाग की टीम गांव-गांव पहुंचकर किसानों को जीरो टिलेज पद्धति से नरवाई-पराली का सदुपयोग करना सीखा रही है। किसान इस पद्धति को समझ गए, तो पिछले साल 2024 की तुलना में आग लगाने की घटनाओं में गिरावट दर्ज होगी।
इस रबी सीजन में तीन लाख हेक्टेयर में गेहूं, 50 हजार हेक्टेयर में चना, 25 हजार हेक्टेयर में सरसों की फसल खेतों से खलिहान, गोदाम और मंडियों में पहुंचने लगी है। खेतों में फसल के ठूंठ के डंठल रह गए हैं, जिन्हें ही नरवाई या पराली कहा जाता है। इससे पहले खरीफ सीजन में कृषि विभाग इस इस जीरो टिलेज पद्धति से नरवाई में आग लगाने की घटनाएं काफी हद तक रोक दी थी। कृषि अधिकारी मान रहे हैं कि नरवाई में आग लगाने की घटनाओं की दृष्टि से सबसे संवेदनशील क्षेत्र सिवनी जिले की सीमा से लगा है, जहां चौरई, चांद जैसे इलाके आते हैं। यहां के किसानों को नरवाई का खाद के रूप में सदुपयोग करने की समझाइश दी जा रही है। सिवनी जिले में ऐसी घटनाएं सर्वाधिक होती हैं।
कृषि विभाग ने इस बार जीरो टिलेज पद्धति का विस्तार करते हुए सुपर सीडर की संख्या 100 से अधिक कर दी है। किसानों को किराए पर भी ये दिए जा रहे हैं, जिन्हें खेतों में चलवाकर ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कराई जा रही है।

गेहूं के दाने से ज्यादा निकलता है भूसा

देखा जाए तो गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। यानी यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी। इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। इस भूसे को मवेशियों को दिया जा सकता है। इसके अलावा इस भूसे को जमीन में ही मिलाकर आने वाली फसल की खाद बतौर उपयोग लिया जा सकता है।

आग लगाने से मिट्टी को नुकसान

फसलों के अवशेष जैसे नरवाई/भूसा को खेत में जलाने से खरपतवार एवं कीट नष्ट हो जाते हैं। मृदा में प्राप्त होने वाले विभित्र पोषक तत्व जैसे नत्रजन गंधक, कार्बनिक पदार्थ की हानि होती है। एरोसॉल के निकलने से वायु प्रदूषण होता है। माना जाता है कि एक टन नरवाई जलाने से 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके साथ ही आसपास खड़े मनुष्य को सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन, नाक एवं गले में समस्या आती है।

हार्वेस्टर के उपयोग से खेतों में लम्बी डंठल

कृषि अधिकारी बताते हैं कि छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, चौरई, चांद समेत आसपास के इलाकों में गेहूं की फसल काटने में हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे खेतों में लम्बी डंठल की नरवाई रह जाने से किसान खेतों में आग लगा देते हैं। आग को रोकने सुपरसीडर का प्रदर्शन कराया जा रहा है। जहां, तामिया, जुन्नारदेव, बिछुआ समेत अन्य इलाकों में जहां हाथों से फसल कटाई हो रही है, वहां नरवाई की समस्या नहीं है।

इनका कहना है


गेहूं की नरवाई में आग लगाने की घटनाएं रोकने हर गांव में जीरो टिलेज पद्धति से सुपर सीडर पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अभी छिंदवाड़ा, चांद और चौरई में इसका प्रदर्शन कराया गया है। इसके माध्यम से किसान खेतों में नरवाई का उपयोग खाद के रूप में कर ग्रीष्मकालीन मूंग लगा रहे हैं।
-जितेन्द्र कुमार सिंह, उपसंचालक कृषि

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