गेहूं के दाने से ज्यादा निकलता है भूसा
देखा जाए तो गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। यानी यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी। इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। इस भूसे को मवेशियों को दिया जा सकता है। इसके अलावा इस भूसे को जमीन में ही मिलाकर आने वाली फसल की खाद बतौर उपयोग लिया जा सकता है।आग लगाने से मिट्टी को नुकसान
फसलों के अवशेष जैसे नरवाई/भूसा को खेत में जलाने से खरपतवार एवं कीट नष्ट हो जाते हैं। मृदा में प्राप्त होने वाले विभित्र पोषक तत्व जैसे नत्रजन गंधक, कार्बनिक पदार्थ की हानि होती है। एरोसॉल के निकलने से वायु प्रदूषण होता है। माना जाता है कि एक टन नरवाई जलाने से 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके साथ ही आसपास खड़े मनुष्य को सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन, नाक एवं गले में समस्या आती है।हार्वेस्टर के उपयोग से खेतों में लम्बी डंठल
कृषि अधिकारी बताते हैं कि छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, चौरई, चांद समेत आसपास के इलाकों में गेहूं की फसल काटने में हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे खेतों में लम्बी डंठल की नरवाई रह जाने से किसान खेतों में आग लगा देते हैं। आग को रोकने सुपरसीडर का प्रदर्शन कराया जा रहा है। जहां, तामिया, जुन्नारदेव, बिछुआ समेत अन्य इलाकों में जहां हाथों से फसल कटाई हो रही है, वहां नरवाई की समस्या नहीं है।इनका कहना है
गेहूं की नरवाई में आग लगाने की घटनाएं रोकने हर गांव में जीरो टिलेज पद्धति से सुपर सीडर पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अभी छिंदवाड़ा, चांद और चौरई में इसका प्रदर्शन कराया गया है। इसके माध्यम से किसान खेतों में नरवाई का उपयोग खाद के रूप में कर ग्रीष्मकालीन मूंग लगा रहे हैं।
-जितेन्द्र कुमार सिंह, उपसंचालक कृषि