बीते दो सालों में सावरवानी में पर्यटकों को 1350 किलो घी बेचा जा चुका है, जिससे गांव में करीबन 11 लाख रूपए की आमदनी हुई है। यहां की महिलाएं अपने घर के आंगन में उगाए गए पपीते, खेतों में उगी सब्जियां और दाल बेचकर आत्मनिर्भर बनी हुई है। सावरवानी में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती है। सुबह-सुबह दूध से मक्खन निकालकर और मक्खन से घी निकालने का कार्य करती हैं। घर के आंगन में बिल्कुल देसी अंदाज में पर्यटकों के सामने ही घी निकाला जाता है और कई बार पर्यटक भी इस प्रक्रिया का आनंद उठाते हैं।
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स्वास्थ्य विभाग में आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति में बड़ा घोटाला! इस पर एमपी टूरिज्म बोर्ड के एएमडी बिदिशा मुखर्जी ने कहा कि ‘सावरवानी में महिलाएं जैविक खेती के माध्यम से उगाए गई दाल, फल व अपने हाथों से बनाए खिलौने की बिक्री करके स्वरोजगार से जुड़ रहीं हैं। यहां पर हजारों रूपए के शुद्ध देशी घी का अनूठा कारोबार करके महिलाओं ने प्रदेश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है।’
देश-विदेश में सावरवानी के घी की धूम
सावरवानी के घी की धूम देश-विदेश में है, जिसका उदाहरण यहां हुई घी की बिक्री है। बीते दो सालों में चंद्रा बाई, शांति बाई, शारदा बाई, सरस्वती बाई, सिमिया बाई, राधा बाई, कला बाई ने पर्यटकों को एक हजार तीन सौ पचास किलो घी बेचा है। यह अपने आप में एक अनूठा रिकार्ड है। आठ सौ रूपए प्रतिकिलो के मान से बिके घी की कुल कीमत 1 लाख 80 हजार रूपए होती है।
स्वाद भूल नहीं पाए अधिकारी-व्यापारी
देश व प्रदेश से पर्यटन ग्राम सावरवानी घूमने आए कई आईएएस अधिकारी, दिल्ली-चंडीगढ़, महाराष्ट्र-गुजरात के व्यापारियों के साथ यहां आने वाले नौकरीपेशा पर्यटक खाने में घी मिलने पर इसके स्वाद को भूल नहीं पाए। कुछ मर्तबा ऐसा भी हुआ कि गांव में जितना भी धी था, पूरा ही खरीद कर ले गए। इसी से यहां घी की बिक्री का रिकार्ड बन गया है।