बताया गया है कि पलायन रोजगार की कमी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव और खेती में घाटा प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा, जिससे पढ़े-लिखे युवा भी बेरोजगारी के कारण गांव छोडऩे को मजबूर हैं।
ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि जिम्मेदारों द्वारा ग्राम में रोजगार उपलब्ध कराए जाने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जिससे मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में मशीनों का उपयोग कर मजदूरों के नाम भुगतान हो रहे हैं।
खेती पर भी असर, मजदूर नहीं मिल रहे जो किसान गांव में टिके हुए हैं, वे भी मजदूरों की कमी से परेशान हैं। खेती, पशुपालन और अन्य परंपरागत व्यवसायों पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। शहरी क्षेत्रों में भी श्रमिकों की कमी महसूस की जा रही है।
मशीनों से हो रहे काम मनरेगा ग्रामीण रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम है, लेकिन इसमें लगातार मनमानी और घोटाले सामने आ रहे हैं। मजदूरों को काम देने की बजाय मशीनों से काम कराया जा रहा है, जिससे ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल पा रहा। इस पर जिला पंचायत और मनरेगा अधिकारियों के पास शिकायतें भी दर्ज हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
बटियागढ़ ब्लॉक के अगारा गांव के निरंजन पटेल, शहजादपुर के संजू कुशवाहा और भूपत समेत अन्य ग्रामीणों ने कहा कि यदि रोजगार के अवसर नहीं बढ़े, तो आने वाले वर्षों में गांव पूरी तरह खाली हो जाएंगे।