2006, 2008 और 2010 में ली गई तस्वीरों से साफ था कि सभी कब्जे 2008 के बाद हुए हैं। ऐसे में सभी बस्तियों को खाली करने के लिए बारी-बारी नोटिस जारी किए गए। वनाधिकार का दावा चूंकि 2005 से पहले का बनता है, इसलिए कब्जेधारियों के दावे ग्राम स्तर पर ही खारिज हो गए।
बारी-बारी वन अमला इन कब्जों को तोड़कर जंगल की जमीनें मुक्त करवा रहा है। अब तक 7 बस्तियां ढहाई जा चुकी हैं। हाल ही में वन अमले ने इंदागांव के बफर जोन में ३६० एकड़ जमीन खाली कराई है। कब्जे खाली करवाने के बाद अमला उन जमीनों पर पौधरोपण भी कर रहा है, ताकि टाइगर रिजर्व के हरे-भरे जंगल फिर आबाद हो सकें।
पौधे तेजी से बढ़ें इसलिए खोदे खास तरह के कंटूर बंड
बस्तियां खाली करवाने के बाद वन अमला इन जगहों पर कंटूर बंड तैयार कर रहा है। ये खास तरह के गड्ढे होते हैं, जिन्हें ढलान की ओर बनाया जाता है। बारिश के दिनों में इनमें पानी ठहर जाता है। जमीन नम बनी रहती है। ऐसे में पेड़ों की पुरानी जड़ों और बीजों को नमी पाकर फिर पनपने का मौका मिलता है। आसपास खाली बची जमीनों पर पौधरोपण भी करते हैं। चूंकि कंटूर मिट्टी का कटाव रोकते हैं, इसलिए नर्सरी के पौधों को भी बारिश में बढ़ने का भरपूर मौका मिल जाता है। रिजर्व में ये नए प्रयोग भी कारगर
चरवाहों से मुखबिरी शिकार रोकने के लिए गांवों में गाय-भैंस चराने वाले चरवाहों का सूचना तंत्र तैयार किया। 40 से ज्यादा एंटी पोचिंग ऑपरेशन में इनकी सूचना अहम रही।
हाथी अलर्ट ऐप इसमें 10-12 किमी के दायरे में हाथी की मौजूदगी की जानकारी मिल जाती है। मानव-पशु द्वंद कम हुआ। हाथियों के कॉरिडोर की मैपिंग भी हो रही है। ट्रैप कैमरा एक्सरसाइज इसकी मदद से इसी साल 100 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियों की तस्वीरें कैद की। इनमें दुर्लभ मालाबार पाइड हॉर्नबिल, जायंट स्क्विरल भी शामिल है।
1000 झिरिया गर्मी में वन्य जीव पानी की तलाश में भटकते हुए बाहर न आएं, इसलिए जंगल के अंदर 1000 झिरिया बनाए। पूरा काम वन स्टाफ ने श्रमदान से किया। कोई ठेका नहीं। एआई कैमरे जानवरों की मूवमेंट और संदिग्ध गतिविधियों पर बारीक नजर रखने एआई कैमरे लगाए जा रहे हैं। ये सोलर पैनल से चलेंगे। इनमें अफसरों का नंबर फीड रहेगा। तस्वीरें और जरूरी जानकारी सीधे उन्हें जाएगी।
कब्जों पर कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी
टाइगर रिजर्व में जंगल और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए कब्जों पर कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी। स्थानीय लोगों और तकनीकी मदद से व्यवस्थाएं दुरुस्त कर रहे हैं। शिकारियों की धरपकड़ का तंत्र भी पहले से काफी मजबूत हुआ है। – वरुण जैन, डिप्टी डायरेक्टर, उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व