बड़ी रोचक है ग्वालियर की गजक की कहानी, सर्दियों का ट्रेडिशनल स्नैक दुनिया भर में मशहूर
Gwalior Gajak: स्टेट टाइम से अब तक 100 साल में कितना बदल गई है तिल से बनी ग्वालियर की गजक (Gwalior Ki Gajak), ऑनलाइन पोर्टल के जरिए देश-विदेश तक पहुंची, ग्वालियर में एक सीजन में हो जाता है गजक का 50 करोड़ का कारोबार
Gwalior Gajak: ठंड का मौसम हो और तिल से बनी गजक की बात ना हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता। ग्वालियर के सर्द मौसम में गजक जहां शरीर को गर्माहट पैदा करती है, वहीं स्वास्थ्य के लिए भी इसे लाभदायक माना जाता है। ग्वालियर में गजक का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है। कहने को तो कुछ लोग इसे औरंगजेब के समय का भी बताते हैं लेकिन इसका कोई प्रामाणिक सबूत नहीं मिलता।
हालांकि शहर के गजक कारोबारियों की मानें तो यहां गजक का काम स्टेट टाइम से किया जा रहा है। पहले गजक कागज की पुडिय़ा में बिका करती थी। वक्त बदलने पर कई दुकानें खुल गईं और अब यह डिब्बों में पैक होकर बिकती है। ग्वालियर में गजक का काम करने वाले कई कारोबारियों की कई पीढिय़ां इसी काम से जुड़ी हैं। उनके मुताबिक 100 वर्ष पहले से गजक बनाकर खिलाने का काम जारी है।
समय के साथ गजक के कारोबार में बदलाव की बयार देखने को मिल रही है। ये काम भी अब हाइटेक हो चुका है। ग्वालियर की गजक की देश-विदेश में पहचान होने के कारण गजक कारोबारियों ने अब इसकी बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल भी बना लिए हैं और इनके जरिए गजक की बुकिंग करके कूरियर से उसे भेजा जाने लगा है।
शहर के मार्केट में खस्ता गजक 240 से 360 रुपए किलो तक बिक रही है। तीन महीनेे के एक सीजन में गजक का करीब 50 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है।
अमरीका भी जाती है गजक (Gwalior Gajak in Other Countries)
ग्वालियर में बनी गजक भारत के विभिन्न प्रदेेशों में तो जाती ही है, साथ ही यहां से विदेशों में रह रहे भारतीय परिवारों के साथ इसका स्वाद विदेशियों को भाता है। व्यापारियों के मुताबिक शहर से कनाडा, इंग्लैंड, पाकिस्तान, सऊदी अरब, नेपाल, भूटान, अमेरिका, चीन, सिंगापुर, मॉरीशस, ईरान आदि जगहों पर कूरियर के जरिए गजक भेजी जा रही है।
समय के साथ बदला गजक का रूप (Gwalior Gajak Trend)
पहले जहां तिली से बनी शक्कर और गुड़ की गजक ही चलन में हुआ करती थी, वहीं समय के साथ इसमें बदलाव आ गया है। बाजार में ड्रॉयफ्रूट गजक, समोसा, कुरकुरे गजक रोल आदि भी मौजूद हैं।
डायबिटीज के मरीजों को ध्यान में रखते हुए शुगर फ्री (नौ कैलोरी) गजक भी बाजार में मौजूद है। शुगर फ्री गजक के दाम 540 रुपए प्रति किलो है। गजक कारोबारियों के मुताबिक शुगर फ्री गजक की भी काफी डिमांड रहती है।
ऐसे बनती है गजक (Gajak Racipe)
गजक बनाना आसान काम नहीं है। इसमें खासी मेहनत लगती है। इसके लिए सबसे पहले तिली को धोकर सुखाया जाता है और फिर उसे साफ कर कढ़ाई में भूना जाता है। भुनी हुई गजक को लकड़ी के हथौड़े से कूटा जाता है।
एक कढ़ाई में शक्कर या गुड़ की चाशनी बनाकर उसमें नीबू का रस मिलाते हुए उसे अच्छी तरह से पकने के बाद ठंडी होने पर इसे दीवार पर लगे कीले के सहारे खींचकर तार बनाए जाते हैं।
फिर भुनी हुई तिली इसमें मिलाकर ठंडी की जाती है और इसे लकड़ी के हथौड़े से लगातार कूटा जाता है। कुटी हुई इस पट्टी को सांचे से काटा जाता है। तैयार हो चुकी गजक की पट्टियों को नमी और हवा से बचाकर रखना पड़ता है।
सलमान खान भी ले चुके गजक का स्वाद (Salman Khan Favourite Gajak)
उपनगर ग्वालियर किलागेट, जामा मस्जिद के पीछे गजक का कारोबार करने वाले इमरान खान ने बताया कि हमारी करीब 110 वर्ष पुरानी दुकान है और चौथी पीढ़ी भी यही काम कर रही है। वे बताते हैं कि जब ग्वालियर दुर्ग स्थित सिंधिया स्कूल में सलमान खान पढ़ा करते थे, तब उन्होंने भी इस गजक का स्वाद लिया है।
चंबल के पानी से गजक में आता खस्तापन (Gwalior Ki Gajak)
दानाओली के गजक कारोबारी श्रीकृष्ण राठौर ने बताया कि हमारी छठवीं पीढ़ी यही काम कर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी गजक खाने के लिए यहां आते थे। स्टेट टाइम से सिंधिया महल में हमारी बनाई गजक जा रही है। चंबल नदी का पानी मीठा है और उसी तासीर के कारण गजक में खस्तापन रहता है। ग्वालियर में तिघरा बांध (ग्वालियर शहर में इस जलाशय से पानी की आपूर्ति होती है) के पानी से गजक में खस्तापन आता है।
विजिटर्स बुक में लिख जाते हैं (Gwalior Gajak ki Dukan)
विदेशी नई सड़क पर गजक कारोबारी महेश राठौर बताते हैं कि हम गजक का काम 100 वर्षों से करते आ रहे हैं। परदादी केशरबाई राठौर ने घर में गजक बनाना शुरू किया था। इस काम को करने वाली हमारी छठवीं पीढ़ी है।
विदेशों से आने वाले गजक के शौकीन तो विजिटर्स बुक में गजक के बारे में अपनी राय तक लिखकर जाते हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर गजक की काफी पूछ-परख होती है। गजक की दुकान का नगर निगम ने 1952 में रजिस्ट्रेशन किया था।