National Doctors Day: सर्वे में खुलासा, देश में डॉक्टरों की मानसिक सेहत पर खतरा, 33.7% तनाव में कर रहे काम
National Doctors Day: डॉक्टर बहुत देर तक काम करते हैं और ज्यादा दबाव में रहते हैं, इसलिए उनका मन बहुत परेशान होता है। हाल ही में एक सर्वे से ये बात सामने आई है।
National Doctors Day:डॉक्टर्स को हमेशा समाज में भगवान का दर्जा दिया जाता है।उनकी सेवाओं को मानवता का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है।खासतौर पर कोरोना महामारी के दौरान हर किसी ने देखा कि किस तरह डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा की।लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जो डॉक्टर हमारी सेहत का ख्याल रखते हैं, उनकी मानसिक सेहत कैसी है?आज देश में बड़ी संख्या में डॉक्टर लंबे कार्य घंटों, संसाधनों की कमी और बढ़ती मरीजों की अपेक्षाओं के कारण मानसिक तनाव में काम कर रहे हैं।हाल ही में पत्रिका द्वारा किए गए एक मल्टीमीडिया रैंडम सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।आइए जानते हैं इससे जुड़ी पूरी जानकारी।
मल्टीमीडिया रैंडम सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए
हाल ही में पत्रिका द्वारा किए गए एक मल्टीमीडिया रैंडम सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।इस सर्वे में 66.3% लोगों ने माना कि डॉक्टरों के लिए लंबा कार्य समय, जरूरी संसाधनों की कमी और मरीजों की अपेक्षाएं सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी हैं।वहीं, 33.7% लोगों ने स्वीकार किया कि डॉक्टर मानसिक दबाव में काम कर रहे हैं।मरीज और डॉक्टर के रिश्ते पर इस तनाव का असर साफ नजर आता है।
मरीजों की रिकवरी में डॉक्टर का व्यवहार भी अहम
सर्वे में 88.1% लोगों ने माना कि अगर डॉक्टर का व्यवहार अच्छा होता है तो मरीज की रिकवरी पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।मरीज डॉक्टर के साथ संवाद में सहज महसूस करते हैं, जिससे उनका इलाज और जल्दी संभव होता है।लेकिन जब डॉक्टर खुद मानसिक तनाव में हों तो उनका व्यवहार भी प्रभावित होता है।
डॉक्टरों की मानसिक सेहत पर ताजा आंकड़े
86% युवा डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट्स मानते हैं कि अत्यधिक ड्यूटी घंटे उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।62% इंटर्न्स और पीजी छात्रों को साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता, जिससे थकावट और तनाव लगातार बढ़ता है।पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, 30% डॉक्टर डिप्रेशन के शिकार हैं, वहीं 15% में क्रॉनिक एंग्जायटी के लक्षण मिले हैं।
भारत में रेजिडेंट डॉक्टरों को अक्सर 72 से 88 घंटे प्रति सप्ताह तक काम करना पड़ता है।इतनी लंबी ड्यूटी में न उन्हें सही से खाना मिलता है, न आराम करने का मौका।
संसाधनों की कमी
कई सरकारी और निजी अस्पतालों में डॉक्टरों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई खास सुविधा नहीं है।काउंसलिंग और हेल्पलाइन जैसी सुविधाएं नाममात्र की हैं।
मरीजों की बढ़ती अपेक्षाएं
हर मरीज चाहता है कि उसका इलाज तुरंत हो जाए, लेकिन डॉक्टरों पर पहले ही काम का दबाव इतना ज्यादा है कि उनके लिए हर किसी को संतुष्ट करना संभव नहीं।
जरूरी हैं समाधान और सुधार के कदम
यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्य मित्तल का कहना है कि डॉक्टरों की मानसिक सेहत के लिए ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी है। डॉक्टरों के कार्य के घंटे तय किए जाएं ताकि उन्हें पर्याप्त आराम मिल सके।
सभी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में गोपनीय वेलनेस सेंटर की स्थापना की जाए। पीजी छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग अनिवार्य की जाए। डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स पर होने वाली हिंसा के खिलाफ सख्त कानून लागू हों और दोषियों को तुरंत सजा मिले।
अस्पतालों में सीसीटीवी से निगरानी बढ़ाई जाए, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके। डॉक्टरों को योग और ध्यान को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए, ताकि मानसिक तनाव कम हो सके।
डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।