रेलवे प्रशासन का कहना है कि ट्रेन में चेकिंग स्टाफ की जिम्मेदारी है कि वे वेटिंग लिस्ट यात्रियों को आरक्षित कोचों से बाहर निकालें। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। कई बार चेकिंग कर्मी या तो मौजूद नहीं होते या फिर यात्रियों की संख्या अधिक होने के कारण वे सख्ती से नियमों को लागू नहीं कर पाते।
भारतीय रेलवे का स्पष्ट नियम है कि चार्ट बनने के बाद भी वेटिंग लिस्ट वाला टिकट आरक्षित श्रेणी के कोच में यात्रा के लिए वैध नहीं होता। ऐसे यात्री को आरक्षित श्रेणी में यात्रा करने की अनुमति नहीं है। यदि कोई व्यक्ति जबरदस्ती यात्रा करता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है या उसे आरक्षित कोच से नीचे उतारा जा सकता है।
यात्रियों और विशेषज्ञों की मांग है कि रेलवे को इस मामले में सख्ती से नियम लागू करने की जरूरत है। इसके लिए टीटीई की जवाबदेही तय की जाए, ट्रेन में अधिक चेकिंग स्टाफ तैनात किए जाएं और आरक्षित यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
कन्फर्म टिकट लेकर यात्रा कर रहे स्वामी तेजानन्द महाराज ने राजस्थान पत्रिका को फोन पर बताया कि मैं आसाम से लौट रहा था। हम जिस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, उस ट्रेन में कई यात्री ऐसे थे जिनके टिकट कन्फर्म नहीं थे बावजूद ऐसे यात्री आरक्षित श्रेणी में यात्रा कर रह रहे थे। वेटिंग लिस्ट वाले यात्री आरक्षित टिकट करने वाले यात्रियों की बर्थों पर बैठ जाते हैं, जिससे उन्हें असुविधा होती है। इस बारे में टीटीई, आरपीएफ एवं रेलवे के अधिकारियों को भी अवगत करवाया गया है। यदि रेलवे समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं देता है, तो यह न केवल सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से गलत है, बल्कि ईमानदार टिकटधारकों के साथ अन्याय भी है।