भैरुसिंह को अवॉर्ड मिलते ही उनके गांव बजरंगपुरा में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी। 2 मई शाम 6 बजे शहर के मधुबन गार्डन में पद्मश्री भैरुसिंह चौहान का नागरिक अभिनंदन किया जाएगा। भैरूसिंह ने संत कबीर के भजनों को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया।
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25 जनवरी की सुबह करीब 10 बजे भैरुसिंह जब रोजमर्रा के कामों से निवृत होकर अपने घर की सफाई करते हुए मोबाइल पर अपने किसी परिचित से बातचीत में जुटे हुए थे। कॉल कट करने के बाद उन्होंने मोबाइल देखा तो एक छूटी हुई कॉल दिखी। उन्होने जब दोबारा उस नंबर पर फोन लगाया तो भैरुसिंह की आंखों में खुशियों के आंसू झलक आएं। भैरुसिंह ने बताया कि सामने से बात करने वाले ने खुद को दिल्ली से होना बताया। साथ ही कहा कि आपका नाम पद्मश्री के लिए चुना जा रहा है।
नौ साल की उम्र से गायन, सैकड़ों मंचों पर प्रस्तुति
67 साल के भैरुसिंह बताते है कि उनका जन्म 27 जुलाई 1961 को हुआ। उनके पिता माधुसिंह चौहान लोकगीत गाते थे। उनके साथ नौ साल की उम्र में गांव में अलाव जलाकर गीत-संगीत करने लगे। अलाव के उजाले में तंबूरा, करताल और मंजीरा लेकर कबीर, मीरा, दादू दयाल सहित अन्य संतो के निर्गुण धारा में डूबे रहते थे। भैरुसिंह अब तक प्रदेश और नेशनल लेवल पर 80 से ज्यादा मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके है। यह भी पढ़े –
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भैरुसिंह अपने बचपन से जुड़ी यादों को ताजा करते हुए भावुक हो उठे। उन्होंने कहा कि पहले गैस सिलेंडर नहीं होने पर चौका-चुल्हा के लिए लकड़ी उठाई। आमदनी के लिए दोने बेचकर जीवन यापन किया। अपने लोकगीतों को आवाज देने के लिए कई किमी लंबा सफर पैदल या साइकिल से तय किया। करीब 80-100 किमी साइकिल से प्रस्तुति देने गए।
आकाशवाणी का ऑडिशन दिया, मिली पहचान
भैरुसिंह के लोकगीतों को 1991 में मंच मिला। 1991 में आकाशवाणी में बी-ग्रेड के लिए इंटरव्यू दिया। 1994 में हाईग्रेड में सिलेक्ट हुआ। इसके बाद लंबे समय तक आकाशवाणी में उनकी आवाज ने पहचान बनाई। भैरुसिंह ने बताया कि रसलपुरा में एक शिक्षिका ने उनके लोकगीतों को सुनकर आकाशवाणी में इंटरव्यू देने की बात कही थी। उनके सुझाव के बाद ही यह मुकाम मिल सका।