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इंदौर

राम मंदिर पर भागवत बोले, भारत की रोजी-रोटी का रास्ता भी यहीं से जाता है

‘भारत की रोजी-रोटी का रास्ता भी राम मंदिर के प्रवेश द्वार से जाता है..।’ये बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने इंदौर के लता मंगेशकर ऑडिटोरियम में आयोजित देवी अहिल्या देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में कही।

इंदौरJan 14, 2025 / 11:26 am

Avantika Pandey

Mohan Bhagwat

Mohan Bhagwat

Mohan Bhagwat : अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना की द्वादशी को अब प्रतिष्ठा द्वादशी कहना। अनेक शतकों से परिचक्र झेलने वाले भारत की सच्ची स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा उस दिन हो गई। भारत के स्व में राम, कृष्ण और शिव हैं। एक विशेष दृष्टि से भारत का संविधान भी स्व से बना है लेकिन उस भाव से चला नहीं। उनकी पूजा करने वाले और उनकी पूजा न करने वाले सब पर लागू हैं। पूजा पद्घति बदल गई लेकिन हमारा स्व वही हैं।
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ये बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत(Mohan Bhagwat) ने इंदौर के लता मंगेशकर ऑडिटोरियम में आयोजित देवी अहिल्या देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में कही। इस वर्ष ये पुरस्कार अयोध्या में राम मंदिर संघर्ष में अपनी महती भूमिका निभाने वालों के प्रतिनिधि के तौर पर तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय को दिया गया। भागवत का कहना था कि लिखित रूप में संविधान हमने पाया है लेकिन अपने मन की नींव पर उसको स्थापित नहीं कर पाए।
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कण-कण में हैं शिव

भागवत का कहना था कि राम, कृष्ण व शिव केवल विशिष्ट पूजा करने वालों के देवी-देवता नहीं हैं? लोहियाजी कहते हैं कि राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं, कृष्ण पूर्व से पश्चिम को जोड़ते हैं और शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में मर्यादा के लिए राम को प्रमाण मानता है। कर्म करके सुखी जीवन के लिए कृष्ण को आदर्श मानता है। आखिर में नीलकंठ भगवान का आदर्श हम सबके सामने है।

विरोध व झगड़े के लिए नहीं था आंदोलन

भागवत(Mohan Bhagwat) बोले कि रामजन्म भूमि आंदोलन शुरू इसलिए नहीं हुआ था कि किसी का विरोध करना है, कहीं झगड़ा होना है। ये तो होने न देने चाहने वाली कुछ शक्तियों का खेल था, जिसके कारण इतना लंबा चला और इतना संघर्ष हुआ। लोग बोलते थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे और सच है कि हमको भी नहीं मालूम था कि संघर्ष कब तक चलेगा।
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धर्म परिवर्तन नहीं, बनते हैं देशद्रोही

भागवत ने संसद में घर वापसी के हंगामे के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात का जिक्र किया। कहना था कि मुखर्जी बोले थे कि मैं कांग्रेस में होता, राष्ट्रपति नहीं होता तो मैं भी यहीं करता। फिर कहा कि आपने जो काम किया है, उससे भारत का 30 प्रतिशत आदिवासी लाइन पर आ गया। क्रिश्चियन बन जाता तो वे बोले देशद्रोही बन जाता क्योंकि क्योंकि कन्वर्जन जड़ों को काटता है। मन से आता है तो कोई बात नहीं। लोभ, लालच व जबरदस्ती से होता है तो उसका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति नहीं होता। जड़ों से काटकर अपने प्रभाव की संख्या बढ़ाना होता है। पांच हजार साल से हम सेक्यूलर हैं।

रोजी-रोटी का रास्ता राम मंदिर से

भागवत ने बताया कि स्व की जाग्रति का आंदोलन चल रहा था तब कॉलेज के विद्यार्थी बैठक में सवाल पूछा गया कि लोगों की रोजी-रोटी की चिंता छोडक़र क्या मंदिर-मंदिर लगा रखा है? मैंने कहा कि आजादी सन् 47 में मिल गई थी। हमारे साथ इजराइल चला और जापान ने चलना शुरू किया, देखो आज वह कहां हैं। आजादी के बाद से समाजवाद और गरीबी हटाओ का नारा दिया जा रहा है पर आज तक कुछ हुआ क्या? भारत की रोजी-रोटी का रास्ता भी राम मंदिर के प्रवेश द्वार से जाता है।
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ये भारत की मूंछों का भी मंदिर

इस अवसर पर चंपत राय ने राम(Ram Mandir) जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ की गाथा सुनाते हुए कई अनछुए पहलुओं की जानकारी दी। उन्होंने वर्ष 1928 से राम जन्मभूमि के लिए हुए अलग-अलग संघर्षों की गाथा सुनाई। इसमें अहम् भूमिका निभाने वालों को नमन किया। वे यहां तक बोले कि यह मंदिर राष्ट्र के मान का तो प्रतीक है ही, भारत की मूंछों का भी मंदिर है।

एक लाख का दिया चेक

समारोह के मुख्य अतिथि मोहन भागवत, आयोजक श्री अहिल्या उत्सव समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, कार्यकारी अध्यक्ष अशोक डागा व सचिव शरयू वाघमारे ने चंपत राय को शॉल-श्रीफल के साथ सम्मान पत्र और एक लाख रुपए का चेक दिया। कार्यक्रम में सांसद शंकर लालवानी, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक उषा ठाकुर व मधु वर्मा सहित संघ के कई बड़े नेता मौजूद थे।

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