CG Naxal Encounter: ड्रोन से भी साफ तस्वीर लेना मुश्किल
वह इस पहाड़ी पर 20 दिन से मौजूद था। उसे पहाड़ के नीचे स्थित गुंडेकोट गांव से रसद मिल रही थी। यह इलाका नक्सलियों का सबसे महफूज ठिकाना था। यहां 2025 के पहले फोर्स ने कभी दस्तक नही दी थी। इसलिए नक्सलियों के बड़े नेता ऐसे स्थानों को सुरक्षित शरण स्थली के रूप में इस्तेमाल करते है। किलेकोट का पहाड़ घने बांस और साल के जंगलों से घिरा हुआ है। यहां ड्रोन से भी साफ तस्वीर लेना मुश्किल है। पहाड़ को घेरने की अधिकारियों ने की थी प्लानिंग
पुलिस सूत्रों का कहना है जिस स्थान पर वसवा राजू की लोकेशन थी, वहां आज तक कोई
ऑपरेशन लॉंच नही किया गया है। अधिकारियों को मालूम था वहां से नक्सली बहुत जल्द ठिकाना नहीं बदल पाएंगे। इसलिए चारों जिलों की फोर्स को एक साथ इस पहाड़ को घेरने की अधिकारियों ने प्लानिंग की।
इस प्लांनिंग का सार्थक परिणाम अधिकारियों के सामने आया है। गांव वालों की बात मानें तो वसवा राजू के साथ 40 लड़ाके मौजूद थे। हालांकि इस भीषण मुठभेड़ में करीब 10 से 12 नक्सली किसी तरह भागने में कामयाब हो गए। जहां मुठभेड़ हुई वह जगह नारायणपुर जिला मुयालय से 150 किमी दूर है।
बोटेर गांव से आगे किलेकोट पहाड़ी पर हुई थी मुठभेड़ यहीं अपने 40 गार्ड के साथ 20 दिन से छिपा था राजू गुंडेकोट से नक्सलियों तक पहुंच रही थी रसद पेड़ों पर गोलियों के निशान, पीतल के खोखे और ब्रांडेड जूते मिले
CG Naxal Encounter: घटना स्थल पर पड़ी सामाग्री भी इस बात को प्रमाणित कर रही है कि वहां वसव राजू मौजूद था। यहां एनर्जी के लिए इस्तेमाल होने वाले कैप्सूल पड़े थे। वहां ब्रांडेड जूते भी पड़े थे। गोलियां तो इतनी चली कि घना जंगल भी छलनी होग गया है। जंगल में अनिगिनत पीतल के खोखे पड़े थे। पूरे पहाड़ को फोर्स ने घेरा था। गांव के लोग बताते है उपर ड्रोन उड़ रहा था और नीचे फोर्स नक्सलियों का पीछा कर रही थी। हालात ये थे एक जगह आकर आमना-सामन हुआ तो
नक्सलियों ने गोली चलाना शरू कर दी।
इलाका इतना दुर्गम कि वहां के लोगों ने नारायणपुर तक नहीं देखा
किलेकोट पहाड़ी पर मुठभेड़ हुई और उस पहाड़ी के नीचे गुंडेकोट गांव है। यह जगह इतनी दुर्गम है कि यहां महज 15 परिवार ही हैं। यहां सरकार की कोई योजना लागू नहीं है। इस गांव में कुछ ग्रामीणों ने बताया कि गुंडेकोट में भीषण गोलीबारी हुई तो दहशत के कारण हम पड़ोस के गांव बोटेर चले गए। उन्होंने कहा कि ये भी सच है पहाड़ी पर नक्सलियों की कई दिनों से हलचल थी। ग्रामीण बताते हैं कि वे कभी अबूझमाड़ भी नहीं गए हैं। सिर्फ ओरछा तक पैदल जाते हैं वह भी राशन लेने के लिए।