किशोरी के जीवन की असामान्य शुरुआत तब हुई, जब वह मात्र तीन साल की थी और उसे मासिक धर्म शुरू हो गया। परिजनों ने कई अस्पतालों में इलाज करवाया, लेकिन सही निदान नहीं हो सका। किशोरी का शारीरिक विकास रुक गया, वजन बढ़ना बंद हो गया और शरीर पर सूजन बढ़ने लगी। डॉक्टरों ने इसे कैंसर समझकर इलाज शुरू किया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।
राजस्थान में रेयर बीमारियों के लिए विशेष प्रयास
राज्य सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए जेके लोन अस्पताल को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने हेतु 22 करोड़ रुपये और बाल संबल योजना के तहत 50 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। डॉ. माथुर बताते हैं कि जन्मजात विकार नवजात मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण हैं। समय पर जांच और उपचार से इन्हें रोका जा सकता है। जेके लोन अस्पताल में हर गुरुवार को रेयर डिजीज क्लिनिक आयोजित होता है, जहां विशेषज्ञ इन जटिल बीमारियों का इलाज करते हैं।
कैंसर की आशंका में निकाली गई ओवरी
लगभग आठ साल पहले सोनोग्राफी में किशोरी की ओवरी में गांठ दिखने पर डॉक्टरों ने कैंसर की आशंका में उसकी एक ओवरी निकाल दी। इसके बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ। हाल ही में जब किशोरी को जयपुर के जेके लोन अस्पताल के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग में लाया गया, तब वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियांशु माथुर और उनकी टीम ने गहन जांच की। एक साधारण थायराइड टेस्ट से पता चला कि किशोरी को वानविक ग्रुनबैक सिंड्रोम है। इस बीमारी में थायराइड हार्मोन का उत्पादन बंद हो जाता है, जिससे समय से पहले यौन विकास शुरू हो जाता है।
सस्ता इलाज, तेजी से सुधार
डॉ. प्रियांशु माथुर के अनुसार, जब किशोरी अस्पताल आई, तब उसका वजन केवल 25 किलो और लंबाई 116 सेमी थी। थायराइड दवा शुरू करने के मात्र 15 दिन में सूजन पूरी तरह खत्म हो गई। चौथे दिन से ही सुधार दिखना शुरू हो गया था। किशोरी ने बताया कि वह पहले से बेहतर महसूस कर रही है। आश्चर्यजनक रूप से, 14 साल तक लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद कभी थायराइड टेस्ट नहीं किया गया, जबकि इस बीमारी का मासिक इलाज खर्च 1,000 रुपए से भी कम है।