50 वर्षीय बेटी क्रॉनिक किडनी डिज़ीज (CKD) से जूझ रही थी। हर तीसरे दिन अस्पताल की डायलिसिस मशीन से बंधी यह महिला, धीरे-धीरे टूट रही थी। जीवन की उम्मीदें कम होती जा रही थीं। पर तभी, एक ऐसा फैसला सामने आया जिसने न सिर्फ उस परिवार की किस्मत बदली, बल्कि चिकित्सा और ममता – दोनों को एक नई परिभाषा दी।
“अगर मेरी जान से उसकी जान बच सकती है, तो मैं तैयार हूं”
जब डॉक्टरों ने परिजनों से किडनी डोनर तलाशने की बात की, तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह जिम्मेदारी खुद मां उठाएंगी। 84 साल की इस महिला ने डॉक्टरों से दो टूक कहा, “मेरी बेटी का जीवन बचाना है तो मेरी किडनी ले लीजिए।” सुनकर हर कोई चौंका, क्योंकि आमतौर पर 60 से अधिक उम्र में अंगदान को जोखिमभरा माना जाता है। लेकिन यह मां न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ थीं, बल्कि मानसिक रूप से बेहद दृढ़।
डॉक्टरों की टीम ने किया असंभव को संभव
एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर के यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी विभाग ने इस असाधारण मामले को गंभीरता से लिया। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. धनंजय अग्रवाल ने डोनर मां की काउंसलिंग की और हर तरह से फिट पाया। इसके बाद यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीरज अग्रवाल और उनकी टीम ने जटिल सर्जरी की ज़िम्मेदारी संभाली। आधुनिक तकनीक और पूरी विशेषज्ञता के साथ ट्रांसप्लांट किया गया — और नतीजा रहा चमत्कारी।
सर्जरी के तीन दिन में मां घर लौटीं, बेटी ICU में स्वस्थ
ऑपरेशन के बाद 84 वर्षीय मां को यूरोलॉजी ICU में रखा गया। पर सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि सर्जरी के महज तीन दिन बाद ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वहीं, बेटी की स्थिति भी स्थिर है। ट्रांसप्लांट की गई किडनी अच्छी तरह काम कर रही है और डॉक्टरों के मुताबिक वह जल्द ही सामान्य जीवन की ओर लौट सकती हैं।
“उम्र सिर्फ एक संख्या है, ममता की कोई सीमा नहीं”
यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. शिवम् प्रियदर्शी कहते हैं, “यह केस चिकित्सा की दृष्टि से अभूतपूर्व है। यह उन परिवारों को नई आशा देगा जो वृद्धावस्था को अंगदान में बाधा मानते हैं।” डॉ. विनय मल्होत्रा (सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक) और एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. दीपक माहेश्वरी ने भी ट्रांसप्लांट टीम को बधाई दी और इस केस को चिकित्सा की ‘जीवंत प्रेरणा’ कहा।
यह सिर्फ ऑपरेशन नहीं, ममता का यज्ञ था
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है — मां केवल जन्म देने वाली नहीं होती, वो ज़रूरत पड़ी तो अपने हिस्से का जीवन भी दे देती है। 84 वर्ष की इस मां का यह कदम सिर्फ बेटी के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए एक संदेश है: “ममता कभी रिटायर नहीं होती।”