जिन्होंने अपने पति के अचानक निधन के बाद भारी कठिनाइयों का सामना किया। बिना किसी स्थिर आय के उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक दशक तक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किया। सीमित वित्तीय संसाधनों और खेती का कोई पूर्व अनुभव न होने के कारण श्याम कुंवर को कम वेतन वाली मजदूरी पर निर्भर रहना पड़ा। अकेले तीन बच्चों की परवरिश का बोझ उनकी कठिनाइयों को और बढ़ा देता था।
लेकिन अब उनका सफर आर्थिक संघर्ष से लेकर एक सफल किसान और उद्यमी बनने तक की मिसाल बन गया। जब उन्होंने आईटीसी द्वारा संचालित महिला किसान गिल्ड स्कूल कार्यक्रम में भाग लिया। इन तकनीकों को अपनाकर, उन्होंने अपनी आय बढ़ाई और कई नए उद्यमों में पुनः निवेश किया। उन्होंने एक छोटी किराने की दुकान खोली। अपने छोट से खेत में फसल उगाई और स्वयं सहायता समूह की मदद से एक आटा चक्की, एक डीप फ्रीजर और दो भैंसें खरीदीं।
आज श्याम कुंवर न केवल आत्मनिर्भर हैं। बल्कि आईटीसी के मार्ग दर्शन, प्रशिक्षण और सहायता से अपने समुदाय की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा हैं। वह सक्रिय रूप से अपना ज्ञान साझा करती हैं और महिलाओं को खेती और उद्यमिता में अवसरों की खोज के लिए प्रोत्साहित करती हैं।