Dapa Pratha: दापा प्रथा क्या है?
दापा प्रथा राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में सैकड़ों सालों से प्रचलित है। एडवोकेट भावाराम गरासिया ने बताया कि इसके अनुसार, लड़की खुद अपनी पसंद का लड़का चुनती है और गणगौर पर्व के दौरान आयोजित मेले में दोनों अपने पसंदीदा साथी को चुनते हैं। इस दौरान लड़कियां 12 से 15 साल की उम्र में होती हैं और लड़के उनके हमउम्र होते हैं। दोनों बिना शादी के दंपती की तरह रहते हैं, जिससे प्रजनन क्षमता का परीक्षण किया जाता है। हालांकि, शादी का कोई प्रमाण नहीं होता और लड़के वालों को लड़की के परिवार को एक रकम भी देनी होती है, जिसे दापा कहा जाता है।कानूनी स्थिति और सामाजिक प्रभाव
माउंट आबू की जनचेतना संस्था की डायरेक्टर रिचा औदिच्य के अनुसार, चाइल्ड मैरिज एक्ट और पोक्सो कानून केवल तब लागू होते हैं, जब कोई शिकायत प्रशासन या पुलिस तक पहुंचे। गरासिया समाज इस मामले में शादी की उम्र से संबंधित कानूनों को नजरअंदाज करता है। इस प्रथा के चलते, लड़कियां खेलने-कूदने की उम्र में ही गर्भवती हो जाती हैं और कई बार प्रसव के दौरान उनकी जान भी चली जाती है। वहीं, लड़के भी खदानों में मजदूरी करते हैं, जिससे वे सिलिकोसिस जैसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं और कई लड़कियां कम उम्र में विधवा हो जाती हैं।राजस्थान में बालिका शिक्षा और मातृत्व की स्थिति
नेशनल हेल्थ सर्वे के अनुसार, राजस्थान में बेटियों की शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति अभी भी गंभीर है। हर तीसरी बेटी 15 से 16 साल की उम्र में मां बन जाती है। इसके अलावा, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में 34 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 17 प्रतिशत लड़कियां 15-16 साल की उम्र में ही मां बन जाती हैं। बाल मृत्यु दर के मामले में भी राजस्थान की स्थिति खराब है, जहां प्रति हजार बच्चों में से 37.6 प्रतिशत बच्चे पांच साल से पहले ही मर जाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए सख्त कानूनी कदम और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है, ताकि बेटियों को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य मिल सके।इन जिलों में करती हैं निवास
राजस्थान में कुल आदिवासी आबादी की 2.5 प्रतिशत आबादी गरासिया जनजाति की।उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, कोटड़ा, झाड़ोल, फलासिया और गोगुंदा।
सिरोही जिले के पिंडवाड़ा और आबू रोड व पाली जिले में करती हैं निवास।
कम उम्र में प्रेग्नेंसी, मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक।
डॉ कविता सिंघल, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जयपुर