विकास जैन ब्रांडेड जेनरिक (प्रोपेगेंडा) मेडिसिन के जरिये कम समय में अरबपति बनने के लिए मुनाफाखोरी का कारोबार इतना गहरा हो चुका है कि ऐसी एक-एक दवा और सर्जिकल आइटमों पर 100 से 6 हजार प्रतिशत तक मुनाफा कमाया जा रहा है। मुनाफाखोर कैंसर, किडनी, न्यूरो, हॉर्ट, फेफड़े, लिवर जैसी गंभीर बीमारियों में भी मनमानी वसूली से नहीं चूक रहे।
राजस्थान पत्रिका संवाददाता ने काले कारोबार की सच्चाई जानने के लिए एक महीने तक दवा बाजार से कई दवाओं के खरीद और बिक्री बिल खंगाले तो यह खुलासा हुआ। मुनाफे के इस बाजार में अब ब्रांडेड दवा कंपनियां भी उतर चुकी हैं। अकेले राजस्थान में एक वर्ष में करीब 20 हजार करोड़ का निजी दवा बाजार माना जाता है। देश में यह करीब 4 लाख करोड़ रुपये है।
चैन बड़ी…सर्वाधिक लूट मरीज से
इस तरह की दवाओं में निर्माता से सीएंडएफ, डिस्ट्रीब्यूटर और स्टॉकिस्ट के पास होते हुए रिटेलर तक कीमत कई गुना हो जाती है। यानि 13 रुपये की खरीद वाली दवा रिटेलेटर तक करीब 50 रुपये की हो जाती है। इसके बाद रिटेलर और कमीशन का पैसा बंटता है। अंत में सबसे ज्यादा पैसा मरीज से लूटा जाता है। 13 रुपये की दवा पर एमआरपी 500 रुपये तक या इससे भी अंकित कर दी जाती है। इसमें मरीज को डिस्काउंट देकर भी कई सौ या हजार प्रतिशत मार्जिन ले लिया जाता है।
प्रोपेगेंडा ब्रांडेड जेनरिक मेडिसिन दवा बाजार में सबसे ज्यादा कमाई वाली मेडिसिन मानी जाती है। इसमें कोई भी व्यक्ति अपने नाम से दवा के ब्रांड नेम का पंजीकरण करवाता है। फिर उस सॉल्ट को दवा निर्माता से खरीदकर अपना लेबल लगवाकर मनमानी एमआरपी अंकित करवाता है। सॉल्ट की खरीद दर काफी कम होती है। इसके बाद वह अपने ब्रांड की मार्केटिंग करता है।
इनका कहना है
ड्रग विभाग लाइसेंसिंग अथॉरिटी है। अधिकतम कीमतें रसायन व उर्वरक मंत्रालय तय करता है। प्रधानमंत्री जनऔषधि केन्द्र बेहतर विकल्प है। जहां 1200 तरह की दवाइयां न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध हैं। —अजय फाटक, औषधि नियंत्रक, राजस्थान
पूरे बाजार को भारी मुनाफाखोरी का कारोबार नहीं कहा जा सकता। अधिकांश कारोबारी उचित मुनाफे पर ही काम कर रहे हैं। जहां तक प्रोपेगेंडा या ब्रांडेड जेनरिक मेडिसिन का सवाल है तो यह सरकार की नीति का ही हिस्सा है। इन दवाइयों की बिक्री और निर्माण अवैध नहीं है। इनमें मुनाफाखोरी को इनकी अधिकतम कीमतें तय करके रोका जा सकता है। शैलेन्द्र भार्गव, दवा कारोबारी
Hindi News / Jaipur / दवाओं की MRP खरीद में 100 से 6000% का अंतर, पहली बार पाठकों के सामने आए मुनाफाखोरी के बिल