दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कलराज मिश्र ने बताया कि 1952 में स्वतंत्र भारत में पहले चुनावों के बाद से, 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिना किसी रुकावट के एक साथ होते रहे। क्योंकि हर कोई एक साथ चुनावों के समर्थन में था, चाहे वह तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस हो या कम्युनिस्ट पार्टियां।
कम्युनिस्ट पार्टियां भी चाहती थी ONOE वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि उस समय ‘राजनीतिक संबद्धताओं से परे सभी ने इसका समर्थन किया। चाहे वह तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या कम्युनिस्ट नेता।
कांग्रेस पर चलन तोड़ने का पूर्व राज्यपाल ने लगाया आरोप
कलराज मिश्र ने बताया कि वन नेशन वन इलेक्शन का चल तब टूटा, जब देश में नए राज्य बने और उनके विधानसभा चुनाव हुए। उन्होंने बताया कि उस समय सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग करके विपक्ष शासित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया। 1972 में आम चुनाव समय से पहले करवाए गए।
चुनावी खर्च कम करने के लिए जरूरी कदम
आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल भी एक साल बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया। कलराज मिश्र ने कहा कि देश भर में एक साथ चुनाव होने से चुनाव खर्च और जनशक्ति में काफी कमी आएगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह किसी राजनीतिक दल के बारे में नहीं है। यह देश के विकास के लिए आवश्यक है।
संविधान के मुताबिक है वन नेशन वन इलेक्शन
उन्होंने बताया कि एक राष्ट्र एक चुनाव पूरी तरह से “संविधान के अनुसार” है और विपक्षी दलों से पूछा जाना चाहिए कि संविधान की कौन सी अनुसूची एक साथ चुनाव कराने की मनाही करती है। वरिष्ठ नेता ने याद दिलाया कि 1983 में भी चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस की थी और कहा था कि यह देश के लिए आवश्यक है।
देश में एक राष्ट्र एक चुनाव पर चल रहा विचार
उन्होंने कहा कि 2016 में नीति आयोग और अन्य सरकारी आयोगों ने भी एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है। एक साथ राष्ट्रीय और विधानसभा चुनाव कराने के लिए 129वां संविधान संशोधन विधेयक पिछले दिसंबर में लोकसभा में पेश किया गया था। बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया था। मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, जिसने पिछले साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,000 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी।