न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने चार आपराधिक याचिकाओं पर सुनवाई के बाद बुधवार को यह आदेश दिया। अब इस मामले पर वृहदपीठ में सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो धीरे-धीरे लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे पश्चिमी विचारों और जीवन शैली के लिए अपने दरवाजे खोल रहा है। हमारे यहां ऐसा कोई अलग से कानून नहीं है, जो लिव-इन-रिलेशनशिप और उसकी अवधारणा को वैधता प्रदान करता हो।
कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप एक समझौता है, जिसमें दो व्यक्ति एक साथ कुछ या लंबे समय के लिए रिश्ते में रहते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 लिव-इन-रिलेशनशिप को मान्यता नहीं देता। मुस्लिम कानून में भी इस तरह के रिश्ते को मान्यता नहीं है, इस तरह के रिश्ते को ‘ज़िना’ और ‘हराम’ माना जाता है। लिव-इन-रिलेशनशिप का विचार अनूठा और आकर्षक लग सकता है लेकिन इससे उत्पन्न होने वाली समस्याएं कई हैं और वे चुनौतीपूर्ण भी हैं।
ऐसे रिश्ते में महिला की स्थिति पत्नी जैसी नहीं होती और इसमें सामाजिक सहमति या पवित्रता का अभाव होता है। अपनी पसंद के साथी के साथ रहने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक आवश्यक पहलू है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में लिव-इन-रिलेशनशिप को अवैध नहीं माना है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में समस्याओं के समाधान के लिए संसद या राज्य विधानसभा को कानून बनाना चाहिए।