क्या हैं इस परियोजना के मायने? किन मोर्चों पर काम?
इस फैसिलिटी का डिजाइन अमरीका की नेशनल इग्निशन फैसिलिटी (एनआइएफ) से मिलता-जुलता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह चीन को सैन्य व ऊर्जा दोनों मोर्चों पर बढ़त दिला सकती है। इसका इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने व ऊर्जा उत्पादन में हो सकता है। बिना धमाकों वाले खुले पारंपरिक परीक्षणों के विपरीत लेजर-आधारित फ्यूजन तकनीक परमाणु हथियारों के विकास के लिए भी उपयोग की जा सकती है।
स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन भी?
चीन को वैश्विक ऊर्जा नवाचार में भी बढ़त मिल सकती है। एक ग्राम फ्यूजन ईंधन से उतनी ऊर्जा प्राप्त हो सकती है जितनी आठ टन कोयले से मिलती है। यह प्रक्रिया न केवल बहुत अधिक ऊर्जा पैदा करती है, बल्कि इसके लिए आवश्यक कच्चे माल भी सस्ते और लगभग असीमित हैं। इसके अलावा, यह प्रक्रिया शून्य उत्सर्जन के साथ होती है और इससे कोई खतरनाक नाभिकीय कचरा भी नहीं उत्पन्न होता।
भारत की तुलना में तेज ?
चीन के परमाणु वारहेड्स जनवरी 2024 तक बढ़कर 500 हो गए वहीं भारत के पास लगभग 172 परमाणु वारहेड्स हैं। चीन परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भी आगे है भारत के पास 23 परमाणु रिएक्टर हैं, जबकि चीन के पास 55 ऑपरेशनल रिएक्टर हैं। चीन तीसरी पीढ़ी के परमाणु रिएक्टरों को व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल करने वाला पहला देश है और वह सालाना 6-8 नए रिएक्टर बना रहा है।
आखिर क्या है चीन का इरादा ?
चीन का गुपचुप तरीके से नया परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कदम उठाना एक बड़ा संकेत हो सकता है। मियानयांग शहर में बन रही यह लेजर-इग्नाइटेड न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च फैसिलिटी, जिसमें ड्यूटेरियम और ट्रिटियम जैसे हाइड्रोजन आइसोटोप्स का उपयोग किया जा रहा है, चीन के परमाणु हथियारों और ऊर्जा के क्षेत्र में संभावित प्रगति को दर्शाती है। यह तकनीक, जो अमेरिका की नेशनल इग्निशन फैसिलिटी से मिलती-जुलती है, चीन को सैन्य और ऊर्जा दोनों मोर्चों पर मजबूती दे सकती है। जहां एक ओर इसका उपयोग परमाणु हथियारों के विकास में हो सकता है, वहीं दूसरी ओर यह साफ-सुथरी ऊर्जा उत्पादन के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है।
चीन दिखाना चाहता है ताकत ?
बहरहाल चीन का यह कदम वैश्विक स्तर पर ऊर्जा उत्पादन और सैन्य शक्ति में अपनी स्थिति को और मजबूत करने का प्रयास प्रतीत होता है, खासकर जब भारत जैसे देशों के मुकाबले चीन के पास परमाणु हथियारों की संख्या और ऊर्जा रिएक्टरों की संख्या बहुत अधिक है। इसका उद्देश्य न केवल अपनी रक्षा क्षमता को बढ़ाना हो सकता है, बल्कि भविष्य में एक ऐसे ऊर्जा स्रोत पर निर्भर होना भी हो सकता है जो न केवल सस्ता हो, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हो।