विकास जैन राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) के तहत एआइ से की जा रही जांच में गंभीर खामियां सामने आ रही हैं। इसके कारण मरीजों को दवा समय पर नहीं मिल पा रही है। सबसे बड़ी परेशानी मरीज के नाम में गलतियों को लेकर है। चिकित्सक पर्ची पर नाम में मात्रा या कोई मानवीय भूल कर दी तो दवा विक्रेता उसे आरजीएचएस में दवा देने से इनकार कर रहे हैं। किसी विक्रेता ने दवा दे भी दी तो आरजीएचएस से भुगतान अटक रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एआइ प्रणाली की सटीकता को बढ़ाने के लिए इसे और अधिक विकसित करने की आवश्यकता है। यदि नाम की पहचान में कोई गलती होती है, तो इसका सीधा असर मरीजों की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। हालांकि वित्त विभाग की ओर से दवा विक्रेताओं के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, इसके बाद भी ऐसी गलतियां लगातार सामने आ रही हैं।
यों बढ़ रही परेशानी, सुनवाई कहीं नहीं
सुशील के सुशीला, ‘विमला’ का नाम ‘बिमला’ रूप में दर्ज होने से दवा प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है। किसी मरीज के नाम के साथ सरनेम नहीं लगाया तो भी परेशानी का सबब बन सकता है। ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और सुनवाई का कोई उचित सिस्टम नहीं है। पर्ची दोबारा बनवाने के लिए मरीजों का फिर चिकित्सक से अपाइंटमेंट लेना संभव ही नहीं होता। दवा विक्रेता पर्ची पर गलती देखकर दवा देने से इनकार कर रहे हैं।
यह वीडियो भी देखें इनका कहना है कि ऐसे बिलिंग पर आरजीएचएस में उनके बिल रोकने के साथ ही ब्लैक लिस्टेड भी कर दिया जाता है। मजबूरन मरीज को पैसे देकर दवा लेनी पड़ रही है। कई दवा विक्रेताओं का मानना है कि आरजीएचएस का बजट 600 करोड़ से 4 हजार करोड़ पार करने का कारण नामों की गलतियां नहीं है। इसका कारण प्रोपेगेंडा मेडिसिन को योजना में जोड़ना है। इन दवाओं को बाहर कर दिया जाए तो इसका घोटाला काफी हद तक कम हो जाएगा।
पुख्ता जांच के बाद करें कार्रवाई
सिर्फ एआइ आधारित डेटा के आधार पर बिना ठोस सबूतों के अस्पतालों को परेशान करना गलत है। पुख्ता जांच और ठोस सबूतों के बाद कोई अस्पताल नियम विरुद्ध गतिविधियों व अनियमितताओं में लिप्त पाया जाता है तो ऐसे अस्पतालों पर कार्यवाही का स्वागत किया जाना चाहिए।
डॉ. विजय कपूर, प्रेसिडेंट, प्राईवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसायटी