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SMS मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने कर दिया कमाल, बिना ऑपरेशन के ही दोबारा लगा दिया ‘आर्टिफिशियल वाल्व’

SMS Hospital: चिकित्सकों का दावा है कि यह उत्तर भारत के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में इस तरह की प्रक्रिया का पहला मामला रहा।

जयपुरJul 22, 2025 / 11:37 am

Akshita Deora

फाइल फोटो: पत्रिका

Heart Patient Successful Treatment: सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के कार्डियोलॉजी विभाग ने दिल के मरीजों के इलाज में बड़ी सफलता प्राप्त की है। यहां 80 वर्षीय मरीज पर बेहद जटिल वॉल्व-इन-वॉल्व ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (टॉवर) प्रक्रिया को सफलता पूर्वक अंजाम दिया गया। चिकित्सकों का दावा है कि यह उत्तर भारत के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में इस तरह की प्रक्रिया का पहला मामला रहा। कार्डियोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. एस.एम शर्मा ने बताया कि मरीज भरतपुर का रहने वाला है, जिसकी 2016 में पहले ओपन-हार्ट सर्जरी हो चुकी थी।

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इस बार डॉक्टरों ने बिना सीना खोले कैथेटर के जरिए नया कृत्रिम वाल्व लगाया। इससे न केवल सर्जरी का खतरा कम हुआ, बल्कि मरीज की रिकवरी भी जल्दी हो गई। इस केस में सीनियर स्ट्रक्चरल हार्ट एक्सपर्ट डॉ. प्रशांत द्विवेदी का विशेष तकनीकी सहयोग रहा। डॉ. दिनेश गौतम ने बताया कि इस तकनीक में पुराने खराब हो चुके सर्जिकल वाल्व के अंदर ही नया वाल्व डाला जाता है। ऐसे मामलों में मरीज का पहले से बदला हुआ हृदय-ढांचा (एनॉटॉमी) और पुराने वाल्व की स्थिति, नए वाल्व को सही जगह पर फिट करना मुश्किल बना देती है।
डॉ. धनंजय शेखावत ने बताया कि अगर वाल्व एकदम सटीक नहीं बैठा तो उसमें रिसाव हो सकता है या फिर वाल्व ठीक से काम नहीं करेगा। इसके अलावा एक बड़ा खतरा यह भी रहता है कि नया वाल्व, दिल की खून पहुंचाने वाली कोरोनरी धमनियों को ब्लॉक न कर दे। ऐसा होने पर मरीज को हार्ट अटैक आ सकता है। थोड़ा रिसाव या स्ट्रोक का खतरा, प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले डाई से किडनी पर असर और रक्तस्राव जैसी चुनौतियां भी होती हैं। एसएमएस अस्पताल ने इस प्रक्रिया को नि:शुल्क किया, जिससे यह उन हज़ारों मरीजों के लिए राहत की खबर बन गया है, जो दोबारा ओपन-हार्ट सर्जरी के जोखिम या खर्च के कारण इलाज से वंचित रह जाते हैं।

अब ऐसे मरीजों को मिलेगा नया जीवन

डॉ. एसएम शर्मा ने बताया कि इस तरह की तकनीक उन मरीजों के लिए जीवनदायिनी हो सकती है, जिनकी उम्र ज्यादा है, पहले सर्जरी हो चुकी है या जो कमजोर शरीर की वजह से फिर से ओपन हार्ट सर्जरी नहीं करा सकते। एसएमएस की यह उपलब्धि न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत के मरीजों के लिए नई उम्मीद बनकर सामने आई है।

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