दिन-रात देखती थी जीत का सपना मोना ने कहा कि पेरिस पैरालंपिक से पूर्व तक शूटिंग की दुनिया में मुझे कोई भी नहीं जानता था। इसके अलावा सबसे अहम बात यह थी कि मेरे पास उच्च स्तर के शूटिंग इक्यूपमेंट तक नहीं थे। उनके लिए काफी पैसे की जरूरत थी वहीं ओलंपिक लेवल की कोचिंग लेने में भी काफी पैसा खर्च होता है। मैं चारों ओर से परेशानियों से घिरी हुई थी। पर मैं दिन-रात एक ही सपना देखती कि मैं जीतने के बाद पोडियम पर खड़ी हूं और मेरी यह सपना तब सच हुआ जब पेरिस में मैंने कांस्य पदक जीता।
मोना ने बताया कि मैं अब अपनी कमियां दूर करने में लगी हूं। मैं चाहती हूं कि देश में अलग-अलग जगह जाकर ट्रेनिंग करूं। इससे हर जगह खेलने का अनुभव मिलता है। मैं नए इक्विपमेंट खरीदने के लिए प्रयासरत हूं। विदेश में ट्रेनिंग लेना चाहती हूं। इसके लिए भी प्रयासरत हूं। मेरा अगला लक्ष्य 2026 एशियन पैरागेस है। 2028 पैरालंपिक के लिए कोटा हासिल करना चाहती हूं और इसके लिए कठिन परिश्रम कर रही हूं। मेरा युवाओं से कहना है कि वे धैर्य और लगन के साथ परिश्रम करते रहे। यही हमें चैंपियन बनाता है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। पेरिस में मेरे सामने विश्व के दिग्गज शूटर थे पर मेहनत और लगन ने मुझे चैंपियन बना दिया।
मन के जीते जीत है … मोना ने कहा कि मैं इस कहावत पर दृढ़ विश्वास करती हूं कि मन के जीते जीत है और मन के हारे हार। अगर हम मन में ठान लें कि जीतेंगे तो हमें दुनिया की कोई ताकत हरा नहीं सकती। मैं और अवनि लेखरा पेरिस में साथ ही थे। अवनि अनुभवी और मैडल विनर थीं। मैं एकदम नई थी लेकिन 100 फीसदी विश्वास था कि अगर सब कुछ सही रहा तो हर हाल में पदक जीतकर ही लौटूंगी। अवनि ने जहां गोल्ड जीता वहीं मैंने कांस्य। भारत के लिए हम दोनों पदक जीते। इससे बढ़कर खुशी कभी नहीं हुई।