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जैसलमेर

ऐतिहासिक सोनार दुर्ग की दीवारें जर्जर, फिर मंडराया खतरा

ऐतिहासिक सोनार दुर्ग एक बार फिर खतरे की जद में है। बीते कुछ दिनों से चल रहे आंधड़ और बारिश के दौर ने दुर्ग की जर्जर दीवारों को और कमजोर कर दिया है।

जैसलमेरMay 04, 2025 / 07:46 pm

Deepak Vyas

ऐतिहासिक सोनार दुर्ग एक बार फिर खतरे की जद में है। बीते कुछ दिनों से चल रहे आंधड़ और बारिश के दौर ने दुर्ग की जर्जर दीवारों को और कमजोर कर दिया है। बाहरी परकोटे की कई दीवारों पर बड़े पत्थर ढीले हो चुके हैं और गिरने की कगार पर हैं। इससे आसपास के निवासियों और व्यापारियों में डर और नाराजगी का माहौल है। हालात की गंभीरता को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कुछ स्थानों पर बल्लियां लगाकर रास्ता बंद किया है, ताकि कोई हादसा न हो, लेकिन लोगों का कहना है कि यह सिर्फ अस्थायी समाधान है। स्थानीय नागरिकों और व्यापारियों का कहना है कि विभाग हर बार हादसे के बाद हरकत में आता है। समय रहते मरम्मत नहीं की जाती। जब तक एक जगह काम पूरा होता है, तब तक दूसरी जगह दीवार जजऱ्र होने की खबर आ जाती है। यह रवैया चिंता का कारण बन चुका है।

200 मीटर दीवार बेहद जर्जर

करीब 870 वर्ष पुराने सोनार दुर्ग में मौजूदा समय में 3 हजार लोग रहते हैं। यही वजह है कि इनकी दीवारों का संरक्षण और भी अधिक जरूरी हो जाता है। जानकारी के अनुसार, किले की बाहरी परकोटे की दीवार का लगभग 200 मीटर का हिस्सा बेहद जर्जर हालत में है। पिछले वर्ष अगस्त में शिव मार्ग के पास किले की दीवार का एक बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिर गया था। अब भी उसी क्षेत्र के आसपास की दीवारों पर दरारें स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

मरम्मत की गति बेहद धीमी

शिव मार्ग क्षेत्र में बीते हादसे के बाद एएसआइ ने दीवार की मरम्मत शुरू की थी, लेकिन काम की गति इतनी धीमी रही कि महीनों तक क्षेत्र में स्टील के बैरिकेड्स लगे रहे और आवाजाही बाधित रही।स्थानीय लोगों को अंदेशा है कि काम की रफ्तार को देखते हुए इसे पूरा होने में और कई महीने लग सकते हैं।

बारिश से कटाव, हादसे की आशंका

दुर्ग के ऊपरी हिस्सों व परकोटे की दीवारें जगह-जगह से क्षतिग्रस्त होने लगी हैं। कई बुर्जों के पास की दीवारें मिट्टी के कटाव से कमजोर हो चुकी हैं। बरसात के दौरान यदि कटाव तेज हुआ तो फिर से दीवार भरभरा कर गिरने या पत्थर निकलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

लगातार निगरानी की दरकार

जैसलमेर दुर्ग को लगातार निगरानी की जरूरत है। वर्षा, आंधी और प्राकृतिक कारणों से यहां लगातार कटाव होता है। यदि समय रहते मरम्मत नहीं हुई तो दीवारों का गिरना तय है। एएसआई के पास तकनीकी विशेषज्ञता होने के बावजूद स्थानीय स्तर पर संसाधनों की कमी के कारण काम सुस्त गति से चलता है।

रोज डर के साए में जीते हैं

हम रोज दुकान खोलते हैं तो ऊपर नजर डालकर देखते हैं कहीं पत्थर गिर न जाए। डर बना रहता है। पिछली बार हादसे के वक्त बाल-बाल बचे थे। अब फिर वही हालात हैं।
  • चंद्रशेखर थानवी, दुकानदार, शिव मार्ग

छवि पर बुरा असर

देश-दुनिया से सैलानी यहां आते हैं, लेकिन किले की हालत देखकर हैरान रह जाते हैं। हमारे पर्यटन की छवि पर भी असर पड़ता है।

-अमरसिंह भाटी, स्थानीय निवासी

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