script भक्तों की अटूट श्रद्धा: रेगिस्तानी क्षेत्र में सात बहनों के देश भर में लाखों भक्त | Unwavering faith of devotees: There are millions of devotees across the country of the seven sisters in the desert region | Patrika News
जैसलमेर

 भक्तों की अटूट श्रद्धा: रेगिस्तानी क्षेत्र में सात बहनों के देश भर में लाखों भक्त

पाकिस्तान सीमा से सटे जैसलमेर जिले में शक्ति की उपासना का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गहरा है।

जैसलमेरOct 03, 2024 / 07:47 pm

Deepak Vyas

jsm news
पाकिस्तान सीमा से सटे जैसलमेर जिले में शक्ति की उपासना का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गहरा है। यहां की विशेष पूजा पद्धति में देवी के स्वरूप की प्रतीकों की पूजा होती है, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘ठाळा’ कहा जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों के विभिन्न दिशाओं में स्थित मंदिरों में स्थापित होते हैं। विशेष रूप से आईनाथ माता के मंदिर इन पहाड़ों में प्रसिद्ध हैं, जहां भक्तों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है।मान्यता है कि सदियों पहले मामडज़ी ने संतान प्राप्ति के लिए मां हिंगलाज देवी की कठिन साधना की। सात दिनों की पदयात्रा और अनगिनत उपासनाओं के बाद, माता प्रसन्न हुईं और उन्हें वरदान मांगने का आदेश दिया। मामडज़ी ने मां हिंगलाज जैसी संतान की कामना की, जिस पर माता ने उन्हें सात पुत्रियों और एक पुत्र का आशीर्वाद दिया। मामडज़ी के घर में सबसे पहले आवड़ माता ने जन्म लिया, जो शक्ति की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। उनके बाद उनकी छह बहनें और एक भाई का जन्म हुआ। ये सातों बहनें आज भी शक्ति अवतार के रूप में पूजनीय हैं। शक्ति साधना की यह परंपरा जैसलमेर के लोगों में पीढिय़ों से संचित श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है, जो आज भी अटूट रूप से जारी है।

स्वांगिया माता

जैसलमेर. शहर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित गजरूप सागर क्षेत्र में स्वांगिया माता का मंदिर है। पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित मंदिर में देवी मां के चमत्कारों पर लोगोंं का इतना विश्वास है कि वे परेशानियां या विपत्ति आने पर यहां धोक देने पहुंचते हैं और मन मांगी मुराद पूरी होने पर दर्शन करना नहीं भूलते।

तनोट माता

भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित और जिला मुख्यालय से 120 किलोमीटर की दूरी पर तनोट माता का मंदिर है। मंदिर करीब 1200 वर्ष प्राचीन माना जाता है। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की पूजा-अर्चना सहित सारी व्यवस्थाओं का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल ही संभालता है।

तेमड़ेराय माता

जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में बना तेमड़ेराय माता का मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र हैं। बताया जाता है कि केशरीसिंह ने विक्रम संवत 1432 में इसका निर्माण करवाया था, जिसमें गोगली राजपूतों ने सहयोग दिया था। मान्यता है कि पहाड़ी की गुफा में रहने वाले तेमड़ा राक्षस का देवी ने वध किया था।
देगराय माता
देगराय माता मंदिर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर स्थित है। मान्यता है कि एक दैत्य का वध कर उसके सिर को ‘देग’ बना दिया था। इस कारण देवी को देगराय नाम से जाना जाता है। नवरात्र के दिनों में यह पूजा-उपासना का अधिक महत्व है।

कालेडूंगराय माता

जैसलमेर से करीब 27 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ी, जिसके सभी पत्थर काले हैं, वहां कालेडूंगराय माता का मंदिर है। चतुर्दशी व नवरात्र पर देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है।

भादरिया माता

रेतीले धोरों के बीच स्थित भादरियाराय माता मंदिर पोकरण से 50 किमी और जैसलमेर से 80 किमी दूर है। यह मंदिर शक्ति व भक्ति का केंद्र है, जहां माता के सात बहिनों के स्वरूप की पूजा होती है। नवरात्र के दौरान यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर का इतिहास विक्रम संवत् 1885 से जुड़ा है। भादरिया महाराज ने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार किया और 35 हजार गोवंश का संरक्षण करने वाली गोशाला स्थापित की। यहां एशिया के बड़े भूमिगत पुस्तकालयों में से एक भी है।

पनोधराराय माता

पन्नोधर राय माता का मंदिर जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ गांव से 21 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। यह मंदिर सुरम्य धोरों के बीच स्थित है और कभी दुर्गम माना जाता था, जहां ऊंटों या पैदल ही पहुंचा जा सकता था। मंदिर का जीर्णोद्धार 1991 में हुआ। यहां मां पन्नोधरराय की पूजा पहले एक पठियाल में होती थी। मंदिर परिसर में सैकड़ों वर्ष पुराना कुआं और गोवर्धन स्थित है, जहां देवी-देवताओं के चित्र अंकित हैं।

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