पश्चिमी राजस्थान में पहली बार दुर्लभ सर्जरी, बचपन से काम नहीं कर रहा था दिल, 23 साल की उम्र में अब मिली राहत
Rare Surgery in MDM Hospital: मरीज के हृदय के चार वॉल्व में से एक पलमोनरी वॉल्व जन्म से ही मौजूद नहीं था। अत: हार्ट की करेक्टिव सर्जरी एवं वॉल्व इंप्लांटेशन करने का निर्णय लिया गया।
राजस्थान के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अधीन मथुरादास माथुर अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक विभाग में पश्चिमी राजस्थान में पहली बार हृदय की विकृति टेट्रालॉजी ऑफ फैलो के साथ एब्सेंट पलमोनरी वॉल्व की दुर्लभ सर्जरी की गई। सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष बलारा ने बताया कि ब्यावर निवासी 23 वर्षीय सोनी सीने में दर्द, सांस फूलने तथा अनायास नीले पड़ने की तकलीफ से जूझ रही थीं।
यह बीमारी गत 2 वर्षों से बढ़ती जा रही थी, जिसके लिए उसने अपने क्षेत्र में इलाज लिया, लेकिन लाभ न मिलने पर सीटीवीएस वार्ड में भर्ती हुई। जहां इकोकार्डियोग्राफी एवं हार्ट के सीटी स्कैन में हृदय की जन्मजात विकृति टेट्रालोजी ऑफ फैलो के साथ पलमोनरी वॉल्व न होने की पुष्टि हुई।
हृदय के चार वॉल्व में से एक पलमोनरी वॉल्व जन्म से ही मौजूद नहीं था। अत: हार्ट की करेक्टिव सर्जरी एवं वॉल्व इंप्लांटेशन करने का निर्णय लिया गया। जोधपुर में सीटीवीएस विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अभिनव सिंह ने बताया कि टेट्रालोजी ऑफ फैलो के साथ एब्सेंट पलमोनरी वाल्व एक दुर्लभ बीमारी है।
नीले पड़ जाते हैं बच्चे
इस बीमारी में हृदय के वेंट्रीकल लेवल में छेद होता है। हृदय का दाहिना हिस्सा जहां से खून की धमनी फेफड़ों की तरफ जाती है वहां मांसपेशियों का गुच्छा होता है, जिसके कारण फेफड़ों में खून की आपूर्ति पूरी नहीं होती। ऐसे में यह बच्चे जन्म के उपरांत नीले पड़ जाते हैं। इस केस में हार्ट के चार वॉल्व में से एक वाल्व जन्म से ही मौजूद नहीं था।
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अब रिकवर कर रही मरीज
ऑपरेशन को सफलतापूर्वक करने में डॉ. बलारा के साथ डॉ. अभिनव सिंह, डॉ. देवाराम, डॉ. अमित, निश्चेतन विभाग के सीनियर प्रो.राकेश करनावत, सह आचार्य डॉ.भरत चौधरी, परफ्यूशनिस्ट माधो सिंह और मनोज शामिल थे। मरीज अब वार्ड में तेजी से रिकवर कर रही है।