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कटनी

जब बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज : जैसे ही पिता को दी मुखाग्नि श्मशान पर गूंजे बेटी के संस्कार, Video

MP News : मुक्ति धाम में अंतिम प्रक्रियाएं शुरू हुईं तो वहां मौजूद लोगों के लिए ये एक अनोखा क्षण था। पूजा विश्वकर्मा ने पहले तो अपने पिता की अर्थी को कांधा दिया, फिर पंडितों से मिले निर्देश पर सभी विधियों का पालन करते हुए पिता को मुखाग्नि भी दी।

कटनीFeb 20, 2025 / 11:27 am

Faiz

MP News
MP News : मध्य प्रदेश के कटनी जिले में रहने वाली पूजा विश्वकर्मा नाम की बेटी ने अपने पिता रामकिशन विश्वकर्मा की मृत्यु के बाद बेटा बनकर उनकी चिता को मुखाग्नि दी। समाज की रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए पूजा ने ये साबित किया कि, बेटी भी बेटे के समान अपने माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकती है।
एनकेजे थाना इलाके में रहने वाली पूजा के पिता रामकिशन विश्वकर्मा भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वकालत के क्षेत्र में कार्यरत थे। कुछ समय पहले उनका निधन हो गया, जिससे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पूजा के भाई शरद विश्वकर्मा की कुछ साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है। घर में सिर्फ पूजा ही थी, जिसने अपने पिता को ये वचन दिया था कि, वो उनके अंतिम संस्कार की पूरी जिम्मेदारी उठाएगी।

क्या है धार्मिक परम्परा?

हिंदू धर्म में ऐसी परंपरा है कि, बेटे द्वारा ही पिता की चिता को मुखाग्नि दी जाती है। अगर बेटा नहीं होता तो भतीजा या कोई अन्य पुरुष ये कार्य करता है। लेकिन, पूजा विश्वकर्मा ने इस मान्यता को बदलते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज के साथ खुद ही किया।
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श्मशान घाट पर गूंजे बेटी के संस्कार

जब एनकेजे स्थित मुक्ति धाम में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई तो वहां मौजूद लोगों के लिए यह एक अनोखा क्षण था। पूजा ने पहले अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया, फिर पंडितों के निर्देशानुसार सभी विधियों का पालन करते हुए मुखाग्नि दी। पूजा ने अपने पिता की चिता के चारों ओर फेरे लिए और बेटे के धर्म का पालन करते हुए उनकी अंतिम यात्रा को पूर्ण किया।

समाज के लिए बनी प्रेरणा

पूजा ने दिखाया कि, बेटियां भी बेटों से कम नहीं। उन्होंने कहा मेरे पापा ने मुझे हमेशा बेटे की तरह पाला, इसलिए आज मैं बेटे का धर्म निभा रही हूँ। पूजा का यह कदम अन्य लड़कियों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है, जो समाज की रूढ़ियों से घबराकर पीछे हट जाती हैं। उन्होंने यह साबित किया कि अंतिम संस्कार केवल बेटे की जिम्मेदारी नहीं होती, बल्कि बेटी भी अपने माता-पिता का उतना ही अधिकारपूर्वक अंतिम संस्कार कर सकती है।
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पितृ ऋण अदा किया

पूजा ने समाज को एक नई सोच दी और यह संदेश दिया कि संस्कार और परंपराएँ भावनाओं से जुड़ी होती हैं, न कि केवल लिंगभेद से। उन्होंने कहा मेरे पापा मुझसे कहते थे कि मैं उनकी ताकत हूँ, और आज मैंने यह साबित कर दिया कि मैं उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी, हूँ और हमेशा रहूँगी। पूजा विश्वकर्मा का यह साहसिक कदम समाज में बेटियों की भूमिका को मजबूत करने का संदेश देता है। उनके इस कार्य को कटनी के लोगों ने सराहा और इसे सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

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