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कवर्धा

महोत्सव से ही मिली भोरमदेव मंदिर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान, जानें इसके पीछे की कहानी..

CG News: कवर्धा जिले में भोरमदेव महोत्सव अब अपना 28 वर्ष पूर्ण करने वाला है। इस महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1995 में हुई जबकि कवर्धा अविभाजित मध्यप्रदेश में राजनांदगांव जिले का हिस्सा था।

कवर्धाMar 21, 2025 / 10:42 am

Shradha Jaiswal

महोत्सव से ही मिली भोरमदेव मंदिर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान, जानें इसके पीछे की कहानी..
CG News: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में भोरमदेव महोत्सव अब अपना 28 वर्ष पूर्ण करने वाला है। इस महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1995 में हुई जबकि कवर्धा अविभाजित मध्यप्रदेश में राजनांदगांव जिले का हिस्सा था। कवर्धा तहसील में स्थित भोरमदेव मंदिर तात्कालीन जिला प्रशासन के सहयोग से एकदिवसीय भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसका मूल उद्देश्य वनांचल की संस्कृति, कला व लोकरंग को दूर-दूर तक प्रचारित करने के साथ-साथ वनांचलवासियों के खुशियों के प्रतीक के रूप में महोत्सव को पहचान देना था।

CG News: भोरमदेव महोत्सव को 28 वर्ष पूर्ण

वहीँ धीरे-धीरे महोत्सव में लोगों की रूचि बढ़ने लगी और यातिप्राप्त कलाकारों ने इस मंच से प्रस्तुति देकर महोत्सव को नई ऊंचाई दी है। 1995 में प्रथम महोत्सव में कथक कलाकार व वर्तमान में इंदिरा कला विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ.मांडवी सिंह व भजन गायक पं. सुरेश दुबे ने प्रस्तुति दी थी। इसके बाद वासंती वैष्णव जैसी एक से बढ़कर एक कथक नृत्यांगनाओं ने इस मंच पर प्रस्तुति दी। आज यह महोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बना चुका है।

महोत्सव से ही मिली भोरमदेव मंदिर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान

जिले के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व समेटे भोरमदेव मंदिर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने व स्थानीय लोक कला व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भोरमदेव महोत्सव की शुरुआत हुई। इसमें शासन-प्रशासन कामयाब भी रहे। आज भोरमदेव मंदिर व भोरमदेव महोत्सव को अब किसी पहचान की आवश्यकता ही नहीं है। इसके चलते ही आज यह मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध है।
वर्ष 2020 और 2021 जब कोरोना काल का दौर चला, जिसके चलते महोत्सव का आयोजन नहीं किया गया। वर्ष 2022 में फिर से इसे प्रारंभ किया गया। वहीं इस वर्ष कवर्धा विधायक व प्रदेश के डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने भोमरदेव महोत्सव को और भव्य रुप देने की विशेष जोर दे रहे हैं। साथ ही मंदिर विकास पर भी कार्य कर रहे हैं।

ऐसे बनी थी महोत्सव की योजना

भोरमदेव महोत्सव की शुरुआत 1995 में हुई थी। तत्कालीन जिला प्रशासन द्वारा एकदिवसीय भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया गया। कवर्धा जिस समय राजनांदगांव जिला अंतर्गत तहसील था उस समय तत्कालीन राजनांदगांव कलक्टर अनिल जैन द्वारा भोरमदेव मेला को महोत्सव के रूप में तैयार करने की योजना बनाई गई।
महोत्सव को भोरमदेव के नाम से प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। संगीत विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मंच के साजो-सज्जा की जिमेदारी दी गई। साथ ही महोत्सव के लिए एक मोनो भी तैयार किया। प्रथम महोत्सव के लाइट, टेंट, माइक आदि की व्यवस्था राजनांदगांव से की ही की गई। क्योंकि कवर्धा में यह सुविधा नहीं थी। यह महोत्सव अब विशाल रुप ले लिया है।

वर्ष 2005 से बदली रुपरेखा

भोरमदेव महोत्सव के प्रथम आयोजन में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति हाफिज अहमद खां, अभयनारायण मलिक, मधुकर आनंद, कथक कलाकार डॉ. मांडवी सिंह, भजन गायक सुरेश दुबे आदि कलाकारों ने नि:शुल्क कार्यक्रम प्रस्तुति किया था। वर्ष 2004 तक स्थानीय और प्रादेशिक स्तर के ही कलाकार मंच की शोभा बढ़ाते रहे।
वर्ष 2005 से भोरमदेव महोत्सव का आयोजन तीन दिवसीय किया गया, ताकि क्षेत्र के लोग राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, लोकगीत, लोकनृत्य सहित अन्य कार्यक्रम का भरपूर आनंद ले सके। इसी वर्ष भजन गायक अनूप जलोटा और पार्श्व गायक सुरेश वाडेकर ने शानदार प्रस्तुति दी। इसके बाद साल दर साल इसकी भव्यता बढ़ती चली गई।

देश के याति प्राप्त गायक और कलाकार दे रहे चुके हैं प्रस्तुति

भोरमदेव महोत्सव में स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कलाकार भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। इसमें भजन सम्राट अनूप जलोटा, प्रयात पार्श्व गायिका अनुराधा पौडवाल, सुरेश वाडेकर, विनोद राठौर, मोहमद अजीज, पंकज उधास, साधना सरगम, उदित नारायण, अहमद हुसैन-मोहमद हुसैन, अलका यागनिक, सुमेधा कर्महे, हंसराज हंस, बप्पी लहरी, अभिजीत भट्टाचार्य महोत्सव में अपने रंग बिखेर चुके हैं।
छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोकनृत्य व अन्य कलाकारों में तीजन बाई, डॉ. मांडवी सिंह, भजन गायक पं. सुरेश दुबे, वासंती वैष्णव, पूर्णाश्री राउत, अनुराधा दुबे, यास्मिन सिंह, कविता वासनिक, अलका चन्द्राकर, दुकालू यादव, लक्ष्मण मस्तुरिया आदि एक से बढ़कर एक कलाकारों ने अब तक अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।

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