विशाखा वर्तमान में गांधीनगर स्थित स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) में नियमित रूप से प्रशिक्षण ले रही हैं। उनकी अगली तैयारी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर भारत का परचम लहराने की है। अपने संघर्ष और मेहनत से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यदि संकल्प मजबूत हो तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं होता।
विशाखा पाराशर के जीवन की कहानी साहस, संकल्प और संघर्ष का जीवंत उदाहरण है। वर्ष 2015 में एक दुर्घटना में छत से गिरने के कारण उनकी रीड की हड्डी में गंभीर चोट आई थी, जिससे उनके शरीर का निचला हिस्सा काम करना बंद कर गया था। डॉक्टरों की राय में जिंदगी सामान्य नहीं रह सकती थी, लेकिन विशाखा ने अपनी कमजोरी को हार मानने के बजाय अपनी ताकत बना लिया। विशाखा के पिता विजय पाराशर एवं माता ने कभी हार नहीं मानी और अपनी बेटी को हर संभव मानसिक, भावनात्मक और नैतिक समर्थन दिया। इसी प्रोत्साहन से प्रेरित होकर विशाखा ने खेलों में अपने भविष्य को आकार देना शुरू किया। उनकी इच्छाशक्ति और लगातार अभ्यास ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया जहां आज वे देश की एक होनहार तलवारबाज बन चुकी हैं।