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कोटा

राजस्थान और MP के लिए आई बड़ी खुशखबरी, वन क्षेत्रों को जोड़कर बनेगा चीता कॉरिडोर, ये जिले होंगे शामिल

Cheetah Corridor: एक ऐसा गलियारा, जिसका उपयोग वन्यजीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बार-बार करते हैं। वन्यजीवों की सुरक्षा, संरक्षण व संवर्धन के लिए कॉरिडोर बनाया जाएगा।

कोटाApr 10, 2025 / 02:33 pm

Akshita Deora

Cheetah-Corridor
हेमंत शर्मा

मध्यप्रदेश के कुनो नेशनल पार्क से निकल कर गाहे-बगाहे राजस्थान के जंगलों में प्रवेश करने वालों चीतों के लिए अच्छी खबर है। दोनों राज्यों के बीच 17 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में कॉरिडोर बनाया जाएगा। इससे मध्यप्रदेश व राजस्थान के बीच चीतों की राह सुगम हो सकेगी। लंबी दूरी तक फर्राटे भरने वाले चीते दोनों राज्यों के बीच दौड़ लगा सकेंगे। राजस्थान के कॉरिडोर का क्षेत्रफल 6500 किमी होगा। कॉरिडोर में चीते कुनो नेशनल पार्क से राजस्थान के मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व से होते हुए गांधी सागर सेंचुरी तक मूव कर सकेंगे। राजस्थान में सीएम स्तर पर इसकी तैयारियां की जा रही हैं।

कॉरिडोर के लिए किया गया सर्वे

चीता प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले विशेषज्ञों की टीम राजस्थान के जंगलों में संभावनाएं तलाश चुकी है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआईआई) से वन्यजीव वैज्ञानिक यदुवेन्द्र देवसिंह झाला ने शेरगढ, भैंसरोडगढ़, मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व व गांधीसागर के जंगलों का भी निरीक्षण किया था।

ये जिले होंगे शामिल

कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ के साथ सवाईमाधोपुर, करौली और चित्तौड़गढ़ ज़लिे भी कॉरिडोर में शामिल होंगे। इन जिलों के वन और वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र को शामिल किया गया है।
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कॉरिडोर का मतलब

एक ऐसा गलियारा, जिसका उपयोग वन्यजीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बार-बार करते हैं। वन्यजीवों की सुरक्षा, संरक्षण व संवर्धन के लिए कॉरिडोर बनाया जाएगा। इस कॉरिडोर के ज़रिए चीते राजस्थान के मुकंदरा रिजर्व से होते हुए मंदसौर की गांधी सागर सेंचुरी तक मूव करेंगे।

एक नजर चीता कॉरिडोर पर

17 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बनेगा कॉरिडोर

6500 वर्ग किलोमीटर रहेगा राजस्थान का हिस्सा

10500 किलोमीटर रहेगा मध्यप्रदेश का क्षेत्र

कुनो में अभी चीतों की संख्या
26 चीते हैं कूनों में (5 मेल, 7 फिमेल व 14 कब्स)

12 चीते दक्षिण अफ्रीकी

8 नामीबिया से लाए गए

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यह होगा फायदा

हाड़ौती में मुकुन्दरा व रामगढ़ टाइगर रिजर्व हैं। भविष्य में बाघों को देखने के साथ पर्यटकों को संभवत: चीतों के भी दर्शन हो सकेंगे। पूर्व में चीते राजस्थान में प्रवेश कर चुके हैं। बारां व करौली के जंगल में चीता आ गया था। बारां से चीता अपने क्षेत्र में लौट गया था, लेकिन करौली के जंगल से ट्रेंकुलाइज करके ले जाना पड़ा था। कॉरिडोर बनने के बाद ट्रेंकुलाइज नहीं करना पडेगा। वे अपनी मर्जी से गलियारे में विचरण कर सकेंगे। चीतों की संख्या में वृद्धि होने के साथ मूवमेंट के लिए उन्हें पर्याप्त जंगल मिलेगा।

शीघ्र होगा एमओयू

कॉरिडोर को लेकर प्रदेश स्तर पर योजना तैयार कर फाइल मुख्यमंत्री के पास भेजी गई है। सीएम स्तर पर निर्णय के बाद दोनों राज्य चीता प्रोजेक्ट पर एमओयू साइन करेंगे। दोनों राज्यों के अधिकारियों ने पूरा ट्रैक बनाया है। चीते और बाघों को लेकर जिलेवार एरिया का पूरा नक्शा तैयार किया गया है। हाल ही कोटा प्रवास के दौरान वनमंत्री कह चुके हैं कि चीता प्रोजेक्ट के तहत दोनों राज्यों के मध्य शीघ्र एमओयू किया जाएगा।

टॉपिक एक्सपर्ट

चीता कॉरिडोर बनाने की योजना तो है, लेकिन यह उच्च स्तरीय मामला है। स्थानीय स्तर पर इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।

सुगनाराम जाट, मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव शाखा व फील्ड डायरेक्टर, मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व

सभी का अपना अलग स्वभाव और गुण भी

प्रकृति ने सभी जीवों का अपना स्वभाव व गुण दिया है। सभी जीवों में अनुकूलन की व्यवस्था है। मछली, मगरमच्छ पानी में रहते हैं, यह एक नेचर है। जंगल में सभी उनके अपने अलग गुण व विशेषताओं के साथ रह सकते हैं। हमारे यहां जहां टाइगर हैं, वहां पैंथर भी हैं और अन्य जीव भी हैं। अफ्रीका में शेर, चीते और बघेरे एक ही जंगल में देखे जा सकते हैं, तो ऐसे में यह नहीं है कि टाइगर हैं तो चीते कैसे रहेंगे। चीतों को मैदानी इलाके रास आते हैं। उसमें दौड़ने का गुण है, वह अपने आप को बचा सकता है। पैंथर में पेड़ पर चढ्ने का गुण है। बाघ घने व छितराये जंगल दोनों स्थानों पर रह सकता है। इसलिए चीता कॉरिडोर से और कोई समया नहीं है, लेकिन इन सभी के लिए जरूरी है कि प्रे-बेस (भोजन) अच्छा हो। प्रे-बेस बढ़ा लिया तो कोई समस्या नहीं होगी, वैसे भी किसी प्रोजेक्ट को पूरा होने में समय लगता है। जितने अधिक वन्यजीव जंगल में होंगे, उतना ही अच्छा है।

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